इम्युनिटी बढ़ाने के लिए इस्कॉन में भगवान को दालचीनी, तेजपत्ता, काली मिर्च का काढ़ा

इस्कॉन मंदिर में इन दिनों भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं हो रहे। मंदिर के पट बंद हैं। केवल पुजारी को ही भीतर जाने की इजाजत है क्योंकि पांच श्रद्धालुओं द्वारा किए गए अभिषेक के बाद भगवान को बुखार हो गया है। वे अस्वस्थ हैं और अपने धाम में एकांतवास (क्वारेंटाइन) कर रहे हैं। पुजारी उनका इलाज कर रहे हैं। 23 जून को एकांतवास का समय पूरा होगा, तब भगवान दर्शन देंगे।
इस्कॉन मंदिर में 5 जून को स्नान यात्रा का आयोजन किया था। पुजारियों और श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का अभिषेक किया था। मान्यता है कि बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा स्नान कराने से भगवान को बुखार हो जाता है। संक्रमण न फैले और बीमारी का इलाज कराने के लिए वे अपने धाम में एकांतवास करते हैं। उसी दिन से भगवान के दर्शन मंदिर में नहीं हो रहे। मंदिर के पट भी बंद हैं। केवल पुजारी ही भगवान के पास जा पा रहे हैं। वे भगवान को रोज सुबह 8 बजे काढ़ा, दोपहर 12 बजे खिचड़ी और भोग, शाम 4 बजे फल, 6 बजे ज्यूस दे रहे हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी अरुणाक्ष्य प्रभु भगवान के लिए काढ़ा और भोग तैयार करते हैं। वे ही भगवान को यह अर्पित भी करते हैं। किसी अन्य को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है। मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित होने से मंदिर में अन्य गतिविधियां भी बंद हैं।

पहली बार जगन्नाथ प्रतिमा स्वरूप में दर्शन
पीआरओ राघव पंडितदास के अनुसार सतयुग में इंद्रध्युम्न भगवान की उस प्रतिमा के दर्शन करना चाहते थे, जिसकी उत्कल के पहाड़ों पर शबर पूजा करते थे। इंद्रध्युम्न जब वहां पहुंचे तो प्रतिमा अंर्तध्यान हो गई। आकाशवाणी हुई कि उस प्रतिमा के दर्शन करना चाहते हो तो पुरी में भगवान का जगन्नाथ का मंदिर बनाओ। एक लकड़ी बहती हुई आएगी उसकी प्रतिमा बनाकर स्थापित करो। इंद्रध्युम्न ने ऐसा ही किया। जब प्रतिमा बनी तो उसका स्वरूप अद्भुत था। स्थापना के पहले जब प्रतिमा का अभिषेक हुआ तो भक्तों ने अतिरेक में इतना स्नान करा दिया कि भगवान बीमार हो गए। इसके बाद भगवान एकांतवास में जाकर इलाज कराने लगे। 15 दिन तक यह सिलसिला चला। वे आषाढ शुक्ल द्वितीया को स्वस्थ होकर मौसी के यहां गुंडिचा रथयात्रा कर पहुंचे। तभी से स्नान यात्रा और रथयात्रा की शुरुआत हुई।
सर्दी-जुखाम, खांसी, बुखार में फायदा
इस्कॉन मंदिर के मुख्य पुजारी अरुणाक्क्ष प्रभु के अनुसार भगवान के काढ़े में लोंग, इलायची, तेजपत्ता, काली मिर्च, अदरक, दालचीनी का उपयोग होता है। इसके अलावा भगवान से प्रार्थना की जाती है। आयुर्वेदिक कॉलेज के एसोसिएट प्रो. योगेश वाणे के अनुसार भगवान के काढ़े में जिन औषधियों का प्रयोग किया जा रहा है, वह आयुर्वेद में सर्दी, खांसी, बुखार के इलाज में उपयोग होती है। मौसम के संधिकाल में इस तरह का काढ़ा लेना अनेक तरह की मौसमी बीमारियों से बचाता है। इन दिनों न तो गर्मी रहती है और न ही बारिश के कारण मौसम ठंडा होता है। इसलिए शरीर तय नहीं कर पाता कि किस तरह मौसम के साथ अपने आप को एडजस्ट करे। इसलिए काढ़ा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इससे हम मौसमी बीमारियों से बच जाते हैं। इन दिनों ज्यादा बाहर नहीं घूमना चाहिए।



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To increase immunity, God has a cinnamon, bay leaves, black pepper decoction in ISKCON


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