व्यसनों का त्याग कर स्वयं को दर्पण के समान बनाएं

जीवन दर्शन में तपस्वी से प्रेरणा पाएं व तप मार्ग से काया को श्रेष्ठ बनाएं। जितना हो सके जिन शासन की प्रभावना में शामिल होकर अपने जीवन को प्रफुल्लित करें। वाणी को माधुर्य बनाएं, व्यसनों का त्याग कर स्वयं को दर्पण के समान बनाएं। यह बात वर्धमान स्थानक जैन भवन नागदा में चातुर्मास के लिए विराजित चैतन्यमुनिजी ने मंगलवार काे धर्मसभा में श्रावक-श्राविकाओं से कही। मुनिजी की निश्रा में श्रावक-श्राविकाओं ने गुरुदेव सौभाग्यमलजी का 36वां पुण्यस्मरण दिवस मनाया।
मुनि ने कहा सौभाग्यमलजी ने अपने संघर्ष के जीवन में स्वाध्याय का दीप जलाकर संपूर्ण जीवन जिन शासन की श्रेष्ठता में बिताया। हम अपने जीवन में उनके बताए मार्ग पर चलकर जिन शासन की शोभा बढ़ाए। जीवन में वाणी की मधुरता, स्नेह व आदर के भाव के साथ अपने गुरु के प्रति समर्पित होकर जिन शासन की शोभा में स्वयं को समर्पित करें। दीक्षा का निर्माण दिवस दर्पण के समान है। जिसमें प्रतिबंध रूपी दर्पण का सान्निध्य दिखाई देता है। जीवन में बुद्धिमत्ता से अपने ज्ञान के द्वार खोलें। दुःख में भी सुख का आनंद पाया जा सकता है। सिर्फ अपने मन की मधुरता को तपस्या रूपी तेज से तपाएं। पुण्य का उदय जीवन में सेवा, स्नेह व औरों के प्रति परोपकार की वर्षा से होगा। परिवार में कलह का वातावरण न रखें। स्वभाव में अच्छे विचारों का विचरण रखें। नितीक्षा मेहता द्वारा 21 उपवास की तपस्या की जा रही है। कई श्रावक-श्राविकाओं द्वारा अपनी यथाशक्ति अनुसार जप, तप किए जा रहे हैं।



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