मृत्युभोज नहीं करवाते हुए किसी ने स्कूल काे वाटर कूलर भेंट कर दिया ताे किसी ने आश्रम में दी राशि ताकि अपनों की यादें हमेशा जिंदा रहे..

मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है जिसे खत्म करने की पहल विभिन्न समाजों द्वारा की जा रही है। इस कुप्रथा को छाेड़कर लाेग इस राशि का उपयोग सामाजिक जरूरतों के लिए दान देकर कर रहे हैं।
लाेग अब मृत्युभोज न देते हुए उसमें खर्च हाेने वाली राशि सामाजिक संस्था, स्कूल, वृद्धा श्रम में देकर उपयाेग कर रहे हैं। लाेगाें का कहना है कि इस राशि से वे अपनाें की याद काे हमेशा के लिए जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं।

भयाबाड़ी गांव की पूर्व सरपंच राजदुलारी का निधन 10 मार्च 2019 को हुआ था। पुत्र आकाश कुदारे ने हवन और पूजा पाठ कराकर श्रद्धांजलि कार्यक्रम किया। हाई स्कूल में बच्चों के लिए 20 हजार रुपए कीमत का वाटर कूलर दान किया। परिजनों की सोच थी कि मृत्युभोज की जगह ऐसा कार्य किया जाए कि मां की यादें स्थायी रहे।
करजगांव के प्रकाश देशमुख का 20 नवंबर 2019 को निधन हुआ था। उनकी पत्नी श्रीमती करुणा देशमुख ने समाज की कुप्रथा को तोड़कर मृत्युभोज की जगह श्रद्धांजलि कार्यक्रम किया। करजगांव के दिव्यांग आश्रम में 21 हजार रुपए दान किए। इसके लिए समाज के पदाधिकारियों ने भी उनका साथ दिया।
मोती वार्ड निवासी रुक्मणी मालवीय का निधन 2017 में हो गया था। पुत्र नेमीचंद मालवीय ने मृत्युभोज ना देकर श्रद्धांजलि कार्यक्रम किया। वहीं कलचुरी समाज को पानी की टंकी और स्कूल के गरीब बच्चों को कपड़ों का दान किया। नेमीचंद का कहना है मां की इच्छा थी कि मृत्युभोज न कर राशि समाज और जरूरत मंदों को दी जाए।



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