भोजपुरी समाज की महिलाओं ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य

शहर में शुक्रवार को भोजपुरी समाज की महिलाएं बड़ी संख्या में मिश्र तालाब पर एकत्रित हुईं । यहां उन्होंने पंडित रमेश तिवारी के मार्गदर्शन में विधि विधान से डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया । इस दौरान षष्ठी देवी की प्रतिमा बनाकर पूजा भी की गई । पंडित तिवारी ने बताया कि तालाब मोहल्ले में यूपी और बिहार के करीब 60 घर है । सभी परिवारों की महिलाओं ने निर्जला व्रत रखकर सामूहिक पूजन की ।गुरुवार की शाम से निर्जला व्रत शुरु हो गया । यह व्रत शुक्रवार के दिन और रात के बाद शनिवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूरा होगा । षष्ठी को लेकर पकवानों के साथ मौसमी फल- फूल और पकवानों के साथ पूजन की जाती है । सूर्य देव को फल और घर पर बनाए गए ठेकुआ , पेड़ा , पकवान, चावल के लड्डू, कच्ची सब्जियां और मौसम की पहली फसल चढ़ाई जाती है । महिलाएं सभी मीठे पकवान , फल , सब्जियां , बांस की बनी टोकरी और सूप रखती है सूप एवं टोकरी डलिया को सजाया जाता है
व्रत का विधान : इस व्रत में पंचमी तिथि से ही महिलाएं प्रारंभ कर देती हैं षष्ठी तिथि के दिन किसी जलाशय में स्नान करके नूतन वस्त्र धारण करके निर्जला व्रत करते हैं सभी महिलाएं अपने अपने घर से पूजन का थाल लेकर किसी नदी के तट पर तालाब पर इकट्ठे होकर अस्त होते सूर्य का पूजन करती हैं सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजन करती हैं व्रत का पारायण करती है और छठ मैया से सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं यह व्रत बड़े नियम से किया जाता है।
इसलिए छठी देवी नाम पड़ा
प्रकृति का छठवां अंश होने से इस देवी का एक नाम षष्ठी है। षष्ठी देवी बालकों की रक्षा एवं आयु प्रदाता हैं । इस व्रत के पालन से संतान की रक्षा होती है । व्रत में सायं कालीन प्रथम अर्घ्य से पूर्व मिट्टी की प्रतिमा बनाकर षष्ठी देवी का आव्हान और पूजन किया गया । शनिवार सुबह अर्घ्य के पूर्व षष्ठी देवी का पूजन कर विसर्जन किया जाएगा । पंचमी की शाम को ही घर में षष्ठी का आगमन हो जाता है इसलिए संसार में पर्व सूर्य षष्ठी के नाम से जाना जाता है ।
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