16 साल में राजघाट की ऊंचाई बढ़ाने, हाइड्रोलिक गेट के प्रस्ताव बने, एक भी काम शुरू नहीं करा पाए महापौर

बेबस नदी पर बने राजघाट परियोजना के (सेकंड फेज) में बांध की हाइट को 2 मीटर बढ़ने का काम वर्ष 2011 में ही हो जाना था। बजट के अभाव में यह काम नहीं हो पाया। साल 2019 में इस काम को कमलनाथ सरकार ने आगे बढ़ाया। 100 करोड़ के स्वीकृति की घोषणा हुई और 137 करोड़ की डीपीआर तैयार कर स्वीकृति के लिए शासन को भेजी गई। लेकिन बांध सत्ता की उथल-पुथल में उलझ गया।

बांध पिछले 16 सालों से लोगों की प्यास बुझा रहा है। उसके विस्तार के लिए जनप्रतिनिधियों के प्रयास उथले ही रहें। इन सालों में भाजपा के 5 महापौरों को जनता ने चुना। इनमें से किसी के भी प्रयास ऐसे नहीं रहे जो हर साल गर्मी के सीजन में राजघाट के पानी को सहेज सके।

दिलचस्प बात यह है कि इन्हीं सालों में राजघाट की ऊंचाई को बढ़ाने, हाइड्रोलिक गेट लगाने, सेना को पानी देनी वाली कैनाल का निर्माण, क्षयरीकरण रोकने और सिल्ट हटाने जैसे कई कामों का प्रस्ताव बना, जो कागजों में ही सिमटकर रह गया।

आबादी बढ़ रही लेकिन राजघाट का विस्तार नहीं
राजघाट का निर्माण वर्ष 2003 में शुरू हुआ था। सप्लाई 2005 से शुरू हुई। तब से लेकर अब तक शहर की औसतन जनसंख्या करीब 30% तक बढ़ गई है। यानी 7% की दर से हर दो साल में जनसंख्या में इजाफा हुआ है पर राजघाट जैसा था वैसा ही रहा। हालात यह है कि गर्मियों के दिनों में लबालब रहने वाला राजघाट अप्रैल महीने से ही दम तोड़ देता है। इस बार राजघाट के विस्तार का एजेंडा चुनावी मुद्दा बन सकता है।

राजघाट के विस्तार के प्रयास असफल होने पर बोले 5 पूर्व महापौर
मेरे कार्यकाल में पानी की दिक्कत नहीं हुई। बांध का विस्तार अलग-अलग फेस में होना था। मेरे कार्यकाल के बाद इस पर अमल नहीं हो पाया।
-मनोरमा गौर, पूर्व महापौर (2000-05)

बांध विस्तार के लिए सेकंड फेज 2011 में होना था। हाइड्रोलिक गेट लगाने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया था लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया है।
- प्रदीप लारिया, पूर्व महापौर (2005-10)

राजघाट के लिए मैंने कई बार प्रयास किए। उन पर कार्रवाई नहीं हो पाई। बांध में मिट्टी जमा हो गई है। वह निकल जाती है तो भराव क्षेत्र में भी विस्तार हो जाएगा।
- अनीता अहिरवार, पूर्व महापौर (2012-14)

बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भोपाल भेजा था। वहां से इंजीनियर भी आए थे। कार्यकाल इतना छोटा था कि कागजी कार्रवाई में ही वक्त निकल गया।
- पुष्पा शिल्पी, पूर्व महापौर (2014)

बांध में किसानों की जमीन डूब में आ रही थी। कमलनाथ सरकार ने हाइट बढ़ाने की मंजूरी दी, लेकिन किसानों को भूमि मुआवजा न मिल पाने से प्रोजेक्ट अटक गया।
- अभय दरे, पूर्व महापौर (2015-20)

वार्ड-03 नेता प्रतिपक्ष के वार्ड में पार्क तो बना पर सड़कों के काम अधूरे
सागर | सिविल लाइन वार्ड से वर्ष 2014 में जनता ने कांग्रेस पार्षद अजय परमार को चुना था, जो नगर सरकार में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे। वार्ड में पिछले पांच सालों में सड़कों के निर्माण पर ज्यादा काम हुआ। फिर भी कुछ सड़कें ऐसी है, जो अभी भी निर्माण की आस लगाए हुए हैं। वार्ड में खुली हुई नालियों की समस्याएं ज्यादा है, तो मुख्य सड़कों पर आवारा मवेशियों का जमावड़ा लगा रहता है। इस वार्ड में मधुकर शाह पार्क हैं, जिसके उन्नयन के लिए लंबे समय से निगम में मांग की जा रही थी, हालांकि हाल में इसे स्मार्ट सिटी के द्वारा डेवलप किया गया है।

वो काम जो अधूरा है: जीएडी कॉलोनी में पार्क की जमीन नहीं मिल पाई।
वो काम जो नहीं हुआ: पुराने एसपी आफिस से नए कलेक्टोरेट की सड़क

5 समस्या
1. खुली हुई नालियां
2. आवारा मवेशी
3. खुदी हुई सड़कें।
4. कई परिवारों को बीएलसी का लाभ नहीं मिला

नालों पर अतिक्रमण
मधुकर शाह पार्क के जीर्णोद्धार के लिए काफी प्रयास किए, जिसका काम स्मार्ट सिटी से हुआ है। एक पार्क जीएडी कालोनी में भी प्रस्तावित था, जिसको मैं बना नहीं पाया।
- अजय परमार, पूर्व पार्षद



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सागर |राजघाट की ऊंचाई बढ़ाने के लिए अब तक कोई पहल नहीं हुई।


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