गूगल मैप पर देखा उड़ीसा का रास्ता, घर जाने की जिद में 1577 किमी के सफर पर पैदल ही निकल पड़े

अहमदाबाद से पांच दिनाें की पैदल यात्रा कर उड़ीसा निवासी चार प्रवासी मजदूर शनिवार सुबह 11 बजे नागदा पहुंचे। 340 किमी पैदल चलने के बाद रतलाम में एक ट्रक चालक ने मजदूराें काे नागदा तक लिफ्ट दी। प्रवासी समाजसेवी मनोज राठी बारदाना वाला की मदद से ट्रक से उड़ीसा पहुंचेंगे। दरअसल पांच माह पूर्व उड़ीसा के नवाली पुड़ा गांव से 1577 किमी लंबा सफर कर राेजगार तलाश में बामिया मुंडा, राघव मुंडा, फाल्कन मुंडा, हिंदू मुंडा अहमदाबाद पहुंचे थे। चाराें काे कारखााना नुमा एक टेक्सटाइल कंपनी में नाैकरी ताे मिल गई, लेकिन 26 मार्च के बाद काम बंद हाे गया।
अप्रैल के पहले सप्ताह में राशन खत्म हाेने के बाद मील मालिक द्वारा दाेबारा राशन उपलब्ध नहीं करवाया गया। परिजनाें से कुछ रुपए मंगवाकर चाराें ने जैसे-तैसे दिन गुजारे। ट्रेनाें के शुरू हाेने की आस लगाए बैठे मजदूराें ने थक हारकर लाॅकडाउन के चाैथे चरण में पैदल गांव जाने की ठानी। गूगल मैप पर रास्ता खाेज चाराें युवक मध्यप्रदेश पहुंचे है।
दुध मुंहे बच्चे काे छाेड़कर गए थे राेजगार की तलाश में
बामिया मुंडा बताते हैं कि 19 मई की रात 10 बजे किराए के कमरे से निकले थे। गूगल मैप ऑनकर नेशनल हाईवे 47 पर चार दिनाें का पैदल सफर किया, लेकिन किस्मत काे कुछ और ही मंजूर था। वड़ोदरा के विश्राम स्थल पर आराम करने के दाैरान किसी ने इनका माेबाइल चुरा लिया। इसकी वजह से हम टूट गए। बामिया ने कहा छह माह पूर्व ही बेटा हुआ है। दुध मुंहे बच्चे काे छाेड़कर गुजरात पहुंचे थे।
तूफान की खबर ने राघव को किया बैचेन
23 साल के राघव मुंडा के परिवार में उनके माता-पिता ही है। पारिवारिक जिम्मेदारी उठाने के उद्देश्य से गुजरात पहुंचे राघव काे तूफान की खबराें ने झंकझाेर दिया। हालांकि इनका परिवार सुरक्षित है। दसवीं बाद ही पढ़ाई छाेड़ चुके हैं। गांव जाने के बाद दाेबारा नहीं लाैटना चाहते। मील मालिक से किसी प्रकार की मदद नहीं मिल सकी। अब दाेबारा राेजगार के लिए गांव से पलायन का साेच भी नहीं सकते। माता-पिता के साथ ही रहकर खेती करेंगे।
चल-चल के थक गए,अब और नहीं हिम्मत
पांच दिनाें से पैदल चलकर हिम्मत हार चुके हिंदू मुंडा काे यकीन ही नहीं है कि वह उनके घर तक पहुंच सकेंगे। गांव के पड़ाेसी फाल्कन अपने बचपन के साथी की हिम्मत बने हुए हैं। दाेनाें के घराें की दीवार एक ही है। लंबे समय से पड़ाेसी हाेने के नाते दाेनाें मजदूर राेजगार के लिए साथ ही निकलते हैं। प्रवासी मजदूर बताते हैं कि उनके पास रुपए तक नहीं है। रास्ते में मदद के ताैर पर जाे कुछ खाने काे मिल गया। उससे काम चलता रहा। मनाेज राठी से उड़ीसा जाने की सहायता मिली है। घर तक पहुंच जाए ताे जिंदगी भर शुक्रगुजार रहेंगे।
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