ईद तो हर साल ही आती है... लेकिन इस संकट के दौर में परिवार से ज्यादा काेरोना के मरीजों को मेरी जरूरत

कोविड-19 से जंग जीतने की जिद में कोरोना वॉरियर्स दिन रात मोर्चे पर डटे हुए हैं। शहर की एक कोरोना वॉरियर्स ऐसी भी है, जिसने ईद परिवार के साथ मनाने की बजाय कोरोना पीड़ितों की सेवा के लिए अस्पताल में रहने का साहसिक निर्णय लिया है। ये हैं 23 साल की डॉ. फरहीन अली, जो कोविड अस्पताल चिरायु के आईसीयू में बीते दो माह से पीड़ितों की तीमारदारी में लगी हुईं हैं।
सेवा का सुख ...पिता ने भी मेरे फैसले पर बढ़ाया हौसला
रमजान में रोजा रखकर लगातार 14 घंटे कोरोना पीड़ितों के इलाज में जुटी डॉ. फरहीन बताती हैं कि जब मैंने अपना यह फैसला वालिद अशरफ अली को सुनाया तो वे उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। हालांकि बहन और भाई सब पसोपेश में थे। वे कहती हैं कि ड्यूटी के दौरान इफ्तार एवं सेहरी का इंतजाम अस्पताल प्रबंधन ने बखूबी निभाया। उन्होंने बताया कि जब मेरे नाना का इंतकाल हुआ तब मैं सेकंड ईयर की स्टूडेंट थीं, लेकिन पढ़ाई के चलते मैं उनके पास नहीं जा सकी। इसका उन्हें मलाल है। अब बुजुर्गों कि सेवा करने में सुख मिलता है।

ड्यूटी का विकल्प दिया...लेकिन मैंने मना कर दिया
डॉ. फरहीन ने बताया कि जब ड्यूटी रोस्टर चार्ट बनाया जा रहा था, तब मुझे ईद पर छुट्टी का विकल्प दिया गया था, लेकिन मैंने इसे स्वीकार नहीं किया। ड्यूटी रोस्टर के हिसाब से वे 17 मई से दो जून तक अस्पताल में रहेंगी। इसके बाद अस्पताल में ही उनका 14 दिन का क्वारंटाइन होगा।
मरीजों से बातेंकरके उनका भ्रम दूर करती हूं
डॉ. फरहीन ने बताया कि आईसीयू में कोरोना के गंभीर मरीजों को ही रखा जाता है। यहां उन्हें इलाज देने के साथ हौसला भी बनाए रखना होता है। इसलिए हम उनका भ्रम और डर दूर करने के लिए उनसे बातें करते हैं। उनके साथ किस्से-कहानियां कहते हैं। ताकि यहां से डिस्चार्ज होने के बाद वे दूसरों को भी गाइड कर सकें। वे कहती हैं कि आप छोटी-छोटी बातों में एहतियात बरतेंगे तो कोरोना से बेहतर तरीके से लड़ सकेंगे।
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