14 साल बाद भी नहीं हाे रहा वनाधिकार कानून का पालन, काबिजाें काे नहीं बंट पाए पट्टे

वन अधिकार कानून काे बने हुए 14 साल बीत चुके हैं, लेकिन इस कानून का पालन नहीं हाे रहा है। जंगलाें में काबिज लाेगाें काे वन अधिकार के पट्टे अब तक नहीं बंट सके हैं। यह कानून सरकाराें में उलझकर रह गया है। इससे भूमिहीन आदिवासियों काे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
श्रमिक आदिवासी संगठन अाैर समाजवादी जन परिषद ने इस संंबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अाैर बैतूल कलेक्टर से सार्वजनिक रूप से मांग करते हुए कहा है कि वे बैतूल जिले में वन अधिकार कानून - 2006 का अनुपालन कराएं। संगठन के राजेन्द्र गढ़वाल ने बताया मध्यप्रदेश सहित केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया था कि वन अधिकार कानून को तय करने की प्रक्रिया सही ढंग से पूरी नहीं हुई है।
उन्हाेंने कहा कि 1 मई 2019 को तत्कालीन कमलनाथ सरकार के आदिम जाति कल्याण विभाग ने एक पत्र जारी कर पूरे प्रदेश में वन मित्र योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत हर गांव में वन अधिकारों को तय करने का काम नए सिरे से किया जाना था। इसमें इन वन मित्रों की मदद ली जानी थी। इस कानून की धारा 4 (5) में लोगों के अधिकार तय होने तक उन्हें उनके व्दारा अधिभोगित जमीन से बेदखल किए जाने पर रोक है।
सजप के अनुराग मोदी ने शिवराज सरकार के सौ दिन पूरे होते ही पूर्ववर्ती सरकार के आदेश को भूल, वन विभाग इस जिले में आदिवासियों काे उनके कब्जे की वनभूमि से बेदखल करने में लग गया है।



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