सड़क निर्माण के नाम पर जनता की मुसीबत बढ़ा दी, न बैरीकेड लगाए, न ही कोई इतजाम

शहर के पश्चिमी हिस्से में लिंक रोड चौराहा, लेबर चौक, गढ़ा रेलवे क्रॉसिंग में सड़क निर्माण और फ्लाई ओवर निर्माण मार्ग में स्वाइल टेस्टिंग से सड़कों पर निकलना मुसीबतों से भरा है ही, साथ ही गौतम मढ़िया से संजीवनी नगर मार्ग पर भी लापरवाही पूर्वक हो रहे निर्माण से भी परेशानी कम नहीं है। इस सड़क का निर्माण जैसे बिना सोचे समझे बिना तैयारियों के आरंभ कर दिया गया। गौतम मढ़िया से 300 से 400 मीटर के हिस्से में 30 फीट की सड़क के हिस्से में 15 फीट एक हिस्से में काम हो रहा है, लेकिन जिस हिस्से में काम नहीं हो रहा है उस हिस्से में चलने लायक नहीं रखा गया। खासकर ओवर ब्रिज से नीचे गौतम मढ़िया से शाहीनाका की ओर तो दिन भर जाम लग रहा है। शनिवार के दिन भी अनेकों बार इस मार्ग पर ट्रैफिक जाम रहा और बड़ी मशक्कत के बाद इस जाम से मुक्ति मिली।

गौतम मढ़िया में एक दुकान चलाने वाले आनंद जैन कहते हैं किअभी शाम और सुबह के वक्त तो हर पल परेशानियों से भरा है। तिराहे में जहाँ पर आकर गाड़ियाँ फँस रही हैं वहाँ कोई पुलिस कर्मी तैनात हो जाए, कोई बैरीकेड बड़े वाहनों के लिए लगे तो समस्या कुछ हद तक हल हाे सकती है पर हो यह रहा है किन तो संजीवनी नगर पुलिस इस ओर ध्यान देती है और ट्रैफिक पुलिस को इस हिस्से से जैसे कोई लेना-देना ही नहीं है। वीर सावरकर वार्ड के पूर्व पार्षद संजय राठौर कहते हैं कि नगर निगम अधिकारी तो सड़क बना रहे हैं यही अहसान बहुत है, एक हिस्से को मोटरेबल रखने की शर्त भी अधिकारी भूल गये हैं।
नो एण्ट्री में भी निकल रहे धड़ल्ले से
गौतम मढ़िया गढ़ा मार्ग बहुत उपयोगी मार्ग है। यह पश्चिमी हिस्से का भीतरी मार्ग है यहाँ से दर्जनों काॅलोनियों, बस्तियों के अलावा मेडिकल, तिलवारा, भेड़ाघाट और उससे लगे गाँवों को जाने का रास्ता भी है पर अभी लोगों की अच्छी खासी फजीहत है। गुलौआ चौक निवासी मनोज पटवा, परचून दुकान चलाने वाले अमरजीत ठाकुर, पिंकी जैन, संजय गुप्ता, दिनेश गुप्ता कहते हैं किअभी फिलहाल असली परेशानी यह है किएक हिस्सा बंद होने के बाद भी नो एण्ट्री में हाइवा और डम्पर धड़ल्ले से निकल रहे हैं। जब लोगों के बाहर जाने और घर आने का पीक टाइम होता है तो हाइवा और डम्पर यहाँ लोगों की जान लेने उतारू रहते हैं। इनको रोकने वाला जैसे कोई नहीं है। बिना नंबर के यह साक्षात मौत के दर्शन कराते हैं। इन पर अंकुश कम से कम सड़क निर्माण के दौरान ही लगे तो लोगों को निकलने में कुछ तो राहत मिले।
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