मैसेज कर लोगों ने दिया समर्थन, युवाओं ने प्रण किया, नहीं देंगे मृत्युभोज

मृत्युभोज बंद करने की दैनिक भास्कर की समाज के साथ एक पहल से लगातार कई लोग जुड़ रहे हैं। कई लोगों ने मैसेज कर इस अभियान पर सहमति जताई है। कुछ लोगों ने प्रण लिया है कि वो न मृत्युभोज देंगे, न कहीं इसमें शामिल होंगे। दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे। बुद्धिजीवी वर्ग भी साथ आया है। महिलाएं भी अपने विचार सामने रखने में आगे आई हैं। उन्होंने इस तरह की परंपरा को गैर जरूरी बताया।

1. मृत्यु पर गम बांटना चाहिए
थांदला कॉलेज प्राचार्य और जैन श्वेतांबर जैन श्रीसंघ के प्रवक्ता प्रदीप संघवी ने कहा, मृत्यु पर गम बांटिए-सामाजिक बदलाव के लिए दैनिक भास्कर की समाज के साथ एक पहल सराहनीय है। यह निश्चित ही एक बदलाव लाएगी। यह भोजन किसी को भी शांति दिला सकता है? यह निष्कर्ष है, जो सही नहीं ।

2. ससुर की मृत्यु पर भोज नहीं
अनिता राठौर ने बताया, साल 1987 में ससुर और 2018 में सास की मृत्यु हुई थी। तब उनके परिवार ने मृत्युभोज नहीं दिया। परिवार के सदस्य कहीं भी मृत्युभोज में शामिल नहीं होते। हम लोग इसके खिलाफ खड़े हैं। परिवार इसे पूरी तरह बंद करने के पक्ष में है। इसके लिए अब दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।

3. बाहर से आ रहा चलन
युवा विक्रमसिंह बामनिया का कहना है, समाज में चल रही इस कुप्रथा की नकारात्मक रूप से आलोचना करता हूं। मनुष्य चाहे किसी भी वर्ग, जाति या समाज को ये प्रभा सामाजिक संस्कृति का अपमान है। इसका बहिष्कार होना चाहिए। इससे परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। समाज को आगे आना चाहिए।

ये भी समर्थन में
हरीश पटेल, राजेश कोठारी, बाबूलाल बृजवासी, अंतिम राठौर, केशरसिंह चौहान, रंजना चौहान, चिराग गुप्ता, सुमन सोलंकी, ऋत्विक सरतालिया, मनीष चौहान, पंकज मालवीय, कमलेश वाखला, ओमकारसिंह मेड़ा, दिनेशचंद्र मेड़ा, केशरसिंह चौहान सहित कई अन्य लोग इसके साथी बने हैं।



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