ईकोफ्रेंडली होगा स्किन कैंसर का इलाज, खर्च भी 50% तक कम

स्किन कैंसर के इलाज की दिशा में बड़ा परिवर्तन होने की उम्मीद है। इसका इलाज सस्ता, सरल और ईकोफ्रेंडली हो सकता है। इसके इलाज के लिए जो जैल दिन में तीन बार लगाना पड़ती है, उसका उपयोग एक दिन में मात्र एक बार ही करना पड़ेगा।
वह भी अभी दिए जा रहे एक डोज के एक चौथाई हिस्से के बराबर। प्री-क्लिनिकल ट्रायल (चूहों पर परीक्षण) के आधार पर इस रिसर्च का पेटेंट भी भारत सरकार के इंडियन पेटेंट हाउस से मिल गया है। अब इसके इंसानों पर प्रयोग की अनुमति मांगी गई है, यह मिलते ही इसका ह्यूमन ट्रायल किया जाएगा। यह रिसर्च डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग में की गई है। यह जैल शोधार्थी डॉ. प्रशांत साहू ने डॉ. सुशील काशव के निर्देशन एवं प्रो. आरके अग्रवाल के सह निर्देशन में तैयार की है। प्रशांत के पिता प्रकाशचंद साहू कैमिस्ट हैं। मां रंजना कलेक्टोरेट में कार्यरत हैं।
पहले से ही चल रही तकनीक को किया उन्नत: डॉ. प्रशांत ने बताया कि कि अभी जैल ट्रीटमेंट की जो तकनीक चल रही है, हमने उसी को उन्नत किया है। लिहाजा इस पर ज्यादा खर्च नहीं आया। क्योंकि नए मॉलीक्यूल बनाने में काफी खर्च आता है।
इंसानी शरीर के बायोलॉजिकल फिनोमिना को देखकर हमने नैनो जैल तैयार की है। चूंकि अभी इंसानों पर प्रयोग बाकी है, लिहाजा सटीक कुछ नहीं बता सकते, पर यह तय है कि यह इलाज पिछली तकनीक से 50 फीसदी तक सस्ता होगा।डॉ. प्रशांत के मुताबिक वर्ष-2016 में 16 सप्ताह तक 42 मेल चूहों पर नैनो जैल का प्रयोग किया। इन पर 90 प्रतिशत रिजल्ट पॉजीटिव मिले थे। आमतौर पर इस प्रकार के प्रयोगों में 40 से 50 प्रतिशत रिजल्ट ही पॉजीटिव आते हैं। लेकिन हमारा प्रयोग बहुत ही कारगर रहा। जल्दी ही हम इंसानों पर इसके प्रयोग के लिए अनुमति मांग रहे हैं। उनके मुताबिक यह रिसर्च वर्ष 2013-14 में शुरू की गई थी। जिसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) नई दिल्ली से ग्रांट मिली थी। प्री-क्लिनिकल ट्रायल के साढ़े 3 साल भारत सरकार से पेटेंट मिला है।
गाइड बोले
यह नेचर में घुलनशील है, कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होगा: गाइड डॉ. सुशील काशव के मुताबिक हमने जो जैल बनाई है, वह ईकोफ्रेंडली है। क्योंकि इसमें जो पॉलीमर है, वह मछली की स्किन से निकाला गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह नेचर में घुलनशील है। बॉडी के अंदर यह जाएगा तो आसानी से घुल जाएगा, इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होगा। जो जैल बाजार में आ रही हैं उनमें साइड इफैक्ट भी होते हैं। लाल रक्त कोशिकाएं, वजन, हीमोग्लोबिन कम हो जाते हैं। स्किन पर विपरीत प्रभाव होता है। उल्टी और सूजन होने जैसी शिकायतें भी आती हैं।

शोध से जुड़ी कुछ खास बातें
इस पेटेंट के मिलने के बाद स्किन कैंसर के ट्रीटमेंट में बड़ा बदलाव आएगा। क्योंकि यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली है और काफी सस्ता है। इससे उपचार के लिए कोई बड़ी मशीनें या टेक्नोलॉजी नहीं चाहिए। { यह रिसर्च दो बड़े जर्नल में भी प्रकाशित हो चुकी है। जर्नल आफ कंट्रोल रिलीज नीदरलैंड के साथ ही मटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग जैसे प्रतिष्ठित जर्नल में इसका प्रकाशित होना, इसकी प्रमाणिकता साबित करते हैं। { इसी रिसर्च प्रस्तुत करने पर मध्यप्रदेश कौंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी द्वारा प्रशांत को वर्ष-2017 में यंग साइंटिस्ट अवार्ड भी दिया गया था।



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