17वीं सदी से शुरू हुआ सिलसिला, 300 साल में पहली बार शाहजहांनी ईदगाह पर नहीं होगी नमाज

आंधी-बारिश हो या तूफान। कीचड़ हो या तेज धूप। कोई भी हालात हो, सबकी मैं गवाह हूं। विपत्तियों में विश्व के लिए दुआएं की। इतनी खुशियां बंटी कि कभी ईद की नमाज नहीं थमी। पिछले साल 35 हजार नमाजी पहुंचे। जगह नहीं मिली तो सड़कों पर बैठ गए। वहीं कालीन बिछाकर नमाज पढ़ी लेकिन आज हालात पहले से जुदा हैं। ऐसे कि पहले कभी न थे। 300 साल में पहली बार मैं ईद पर अकेली हूं, तन्हा हूं, बेबस हूं, उदास हूं, लाचार हूं। आप सभी अपने-अपने घरों में दूरी बनाकर रहें। ईद की नमाज पढ़ें और परिवार को सुरक्षित रखें। यह बुरा दौर भी थमेगा, बीतेगा, गुजरेगा और एक बार फिर मैं आप सबकी मौजूदगी की गवाह बनूंगी। अल्लाह की इबादत और इसके लिए उठते हजारों हाथों के साथ।
इतिहास में नहीं दर्ज ऐसा कोई वाकया- फलक
सिंधीबस्ती स्थित शाहजहांनी ईदगाह आज के हालात में अपना दर्द बयां करती तो उसके लफ्ज यही होते। इतिहास के जानकार कमरुद्दीन फलक कहते हैं ईदगाह पर कभी ईद की नमाज नहीं हुई हो, इतिहास या पुरखों के पास ऐसा कोई वाकया दर्ज नहीं है। इतिहास के पन्नों में वही बातें दर्ज होती हैं जो पहले कभी नहीं हुई हो। इसलिए यह कह सकता हूं कि 300 साल में पहली बार ऐसे हालात सामने आए हैं कि चाहकर भी हम ईदगाह पर ईद की नमाज नहीं पढ़ सकते। 2020 में 24 मई की ईद पर घरों में पढ़ी जाने वाली नमाज इतिहास में लिखी जाएगी।
घर की सफाई करें और यहीं ईद मनाएं- शाही इमाम
शाही इमाम सैयद इकराम उल्ला बुखारी के अनुसार शहर में पीर (सोमवार) को समाजजन ईद का पर्व मनाएंगे। मैं शहर की आवाम से कहना चाहता हूं कि लॉकडाउन लगा है। जिस तरह दो माह तक घरों में नमाज पढ़ी। ईद पर भी अपने घरों में रहकर दुआ करें। घर की सफाई करें और यहीं ईद मनाएं।
पिछले साल ईद पर 35 हजार से ज्यादा समाजजन ने नमाज पढ़ी थी।




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Continuation of 17th century, for the first time in 300 years, Shahjahani will not offer prayers at Idgah


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