पिता की तेरहवीं में पानी की समस्या हुई तो, आदिवासी दंपती ने 15 दिन में खाेदा 35 फीट कुआं; हैंडपंप सूखा तो नदी में बनाई झिरिया

इंसान की मूलभूत आवश्यकता में शुमार शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता बस्तियों में आज भी बड़ी समस्या है जबकि नियम है कि आदिवासी बाहुल्य बस्तियों में हैण्डपंप के बोर में मोटरपंप
डालकर पेयजल उपलब्ध कराया जाता है, नियमों के इतर जमीनी हालत बिल्कुल उल्टे हैं। अंचल के 3 गांवों से पेयजल समस्या की 3 तस्वीरें कहानियों के साथ सामने आईं हैं।

सलीम खान, सीईओ पद परजनपद पंचायत मुंगावली में पदस्थ हैं।इस संबंध में पीएचई को पत्र भेज रहे हैं। ग्राम पंचायत सचिवों से भी जानकारी मांगी है। आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

पिररौदा में हैंडपंप का नहीं था साफ पानी तो दिव्यांग ने खोदा कुआं, पडोसियों को मिला पानी
पिपरौदा में कलेक्टर आदिवासी ने घर के आंगन में कुआं खोद लिया। एक पैर से निशक्त कलेक्टर ने बताया कि 3 साल पहले पिता के 13वीं में बमुश्किल पानी की व्यवस्था हुई थी। तभी ठान लिया और अपनी पत्नी के साथ 15 दिन में 35 फीट गहरा कुआं खोद लिया। इससे आसपास के परिवार भी प्यास बुझा रहे हैं। इस बस्ते में लगे हैंडपंप में साफ पानी नहीं आता था।

खोपरा में हैंडपंप सूखा तो नदी में बनाई झिरिया

खोपरा में कुछ आदिवासी परिवार वनभूमि में रहते हैं। ग्राम पंचायत ने 2-3 साल पहले हैण्डपंप लगवाया था। जहां बोर हुआ, वह भूमि पथरीली है। कुछ दिन बाद बोर सूख गया। आदिवासी एक किमी दूर वनचौकी के हैण्डपंप से पानी भरने जाते थे। अमर सिंह और मेहरबान आदिवासी ने बताया कि घर के पास से निकली कैथन नदी के किनारे पर 6 फीट गहरी झिरिया बना लीं। नदीं का पानी झिरिया में छनकर आ जाता है, जिससे बस्ती के परिवारों की प्यास बुझ रही है।

कलुआ चक में नाले की तलछटी में खोद लिया 10 फीट गहरा कुआं, मिल रहा भरपूर पानी

आदिवासी बाहुल्य कुलुआ चक की ममता बाई ने बताया कि गांव में हैण्डपंप है, जो एक किमी दूर है। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि खेत में नलकूप खनन कराया जाए। ऐसे में परिवार के सदस्यों ने खेत के पास से बहने वाले बरसाती नाले की तलछटी में कुआं खोद लिया। 10 फीट गहरे कुआं से ही परिवार के पेयजल की आपूर्ति होती है।



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पिररौदा में हैंडपंप का नहीं था साफ पानी तो दिव्यांग ने खोदा कुआं।


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