यहां मजदूरी 190 रुपए, छुट्‌टी के दिन काम नहीं, गुजरात में मिलते हैं 400 रुपए; मजदूरों का कहना- हमें चाहे पैसे कम मिले, लेकिन गांव में रहकर करेंगे काम

भवन निर्माण और सालाना किसानी के काम की अनुमति मिलने के बाद अब जिले से मजदूर फिर से इन कामाें के लिए लाैटने लगे हैं, लेकिन जाे नहीं जा पा रहे हैं वे गांव में ही रहकर काम तलाश रहे हैं। तिरला ब्लाॅक के अधिकांश मजूदर अन्य प्रदेशाें में जाने के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं। फिर से लाैटने के पीछे एक कारण यह भी देखा जा रहा है कि उन्हें शासन की मनरेगा याेजना की तुलना में तीन गुना अधिक भुगतान वहां मिल जाता है। जिले के तिरला ब्लाॅक के करीब 400 मजदूर इस प्रकार के कामाें काे लेकर इंदाैर, पीथमपुर, राऊ लाैटे हैं। हालांकि तिरला ब्लाॅक की 52 पंचायताें में सात हजार से अधिक मजदूराें काे मनरेगा के तहत काम दिया है।
हमें गांव में ही काम मिल रहा है
माफीपुरा के किसान के खेत में मेड बंधान का काम कर रहे मजदूर बहादूर, बबलू और भूरू ने बताया कि वे गांव मेंरहकर ही काम करेंगे। बाहर नहीं जाएंगे। हमें चाहे कम पैसे मिले, लेकिन लाॅकडाउन में जाे तकलीफें अन्य मजदूराें की देखी हैं उससे अच्छा है कि हम गांव में रहकर ही काम करें। बाहर जाने में परिवार काे भी परेशानी हाेती है

400 मजदूर पीथमपुर लाैटे, क्याेंकि ज्यादा रुपए मिल रहे
जिले के तिरला ब्लाॅक से मजदूर काम के सिलसिले में गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा पीथमपुर, राऊ और इंदाैर जाते हैं। लाॅकडाउन लगने के बाद लाैट अाए थे। कुछ दिनाें से मकान निर्माण और सालाना किसानी के काम की अनुमति मिलने के बाद फिर से काम पर लाैटने लगे हैं। अब भवन निर्माण ठेकेदाराें ने इनसे फिर से संपर्क किया। तिरला ब्लाॅक के आमलिया भेरू से 6, कामता के 22 इसके साथ ही सिंधकुआ, आंबाकुंडिया, काेकलझिरी काे मिलाकर करीब 400 मजूदर इन दिनाें पीथमपुर लाैट गए हैं। इनमें कई सालाना किसानी के काम से भी गए हैं। अामलिया भेरू के रामसिंग ने बताया कि हम वहां पहले से काम करते थे। ठेकेदार का फाेन आया था इसलिए परिवार के साथ लाैट गए हैं। उनके अलावा राहुल, रमेश, सुनील भी अपने परिवार के साथ पीथमपुर में मकान की छत भरने का काम कर रहे हैं। राहुल का कहना है कि मनरेगा से तीन गुना अधिक मजदूरी हमें इस काम में मिलती है। तिरला ब्लाॅक से अन्य प्रदेशाें में मजदूर फिर से नहीं गए हैं।

एक कारण यह भी...कर्जा नहीं लेना पड़ता, मासिक भुगतान भी मिलता है
मजदूराें के फिर से काम पर लाैटने का एक कारण यह भी है कि वे किसानी के सालाना काम के पैसे एडवांस में ले लेते हैं। इससे उन्हें शादी-ब्याह या अन्य कार्याें के लिए कर्जा नहीं लेना पड़ता है। क्याेंकि वे किसान से जाे पैसा एडवांस लेते हैं उससे अपना काम निपटा लेते हैं। इसके अलावा मासिक राशि भी अलग से मिल जाती है। गाैरतलब है कि अादिवासी समाज में वर पक्ष काे वधू पक्ष काे विवाह के पूर्व एक निर्धारित राशि देनी हाेती है। उसकी व्यवस्था भी करनी हाेती है। इसके अलावा छुट्टी मजदूरी करके भी आमदनी हाे जाती है।
सरकारी रेट 190 रु. जबकि भवन निर्माण में 400 से अधिक मिलते हैं
वर्तमान में मनरेगा के तहत मजदूराें काे काम दिया जा रहा है। इसमें उन्हें 190 रुपए प्रतिदिन मजदूरी मिल रही है। महीने के चार रविवार और अन्य शासकीय अवकाश के दिन काम बंद रहता है, यानी महीने में 25 दिन मजदूरी मिलती है। भवन निर्माण के काम में उन्हें 400 से 500 रुपए मिल जाते हैं। जिस दिन काम नहीं हाेता है अाैर ठेकेदार बुलाता है ताे उस दिन की मजदूरी भी मिल जाती है। इसलिए भी मजदूर बाहर जाकर काम करने में अधिक रूचि रखते हैं। तिरला ब्लाॅक में ही 52 पंचायताें में 144 गांव हैं।



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तिरला. माफीपुरा गांव में किसान के खेत पर मेड़ बंधान का काम करते हुए मजदूर।


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