स्नेह की भावना से हिंसा के विचार नहीं उठते
अहिंसा का अर्थ बहुत गहरा है। आत्मा अमर है और कोई भी आत्मा को मार नहीं सकता। सिर्फ शरीर मरता है। पाप किसी को थप्पड़ मारने से नहीं लगता, मारने की इच्छा से लगता है। बिजली के तार को पकड़ने से कुछ नहीं होता। उन तारों में दौड़ रहा करंट मनुष्य को नुकसान करता है। आप ने एक पत्थर उठाया और किसी का सिर फोड़ देने के लिए फेंका। पत्थर नहीं लगा और किनारे से निकल गया। कुछ चोट नहीं पहुंची, कहीं कुछ नहीं हुआ। लेकिन हिंसा हो गई। असल में जब आपने पत्थर फेंका, तब विचार के रूप में हिंसा प्रकट हुई। स्नेह की भावना से हिंसा के विचार नहीं उठते।
यह बात इंदौर से पधारे धार्मिक प्रभाग के मुख्य प्रवक्ता ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने दीपा की चौकी स्थित ब्रह्माकुमारी सभागृह से शहरवासियों को अहिंसा विषय पर केंद्रित ऑनलाइन संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा पत्थर फेंकने की कामना की, आकांक्षा की, वासना की, तभी हिंसा हो गई। पत्थर फेंकने की दुर्भावना की, ये हिंसा हुई। पत्थर फेंकने की दुर्भावना अचेतन में छिपी है हिंसा का संबंध किसी को मारने से नहीं, हिंसा का संबंध मारने की दुर्भावना से है। अहिंसा के मार्ग में जो किसी को मारने की भावना से मुक्त हो जाते हैं वे भी पहुंच जाते हैं। वहीं जहां कोई योग से, कोई सेवा से, प्रभु-अर्पण से पहुंचता है।
मन में लोभ है, तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है : नारायण भाई ने कहा अहिंसा की कामना या हिंसा की वासना से मुक्त हो जाने का क्या अर्थ है? सारे भिन्न-भिन्न मार्ग बहुत गहरे में कहीं एक ही मूल से जुड़े होते हैं। जब तक मनुष्य के मन में लोभ है तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है। जब तक आदमी इंद्रियों को तृप्त करने के लिए विक्षिप्त है, तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है। स्थूल तथा सूक्ष्म इंद्रियां पूरे समय हिंसा कर रही है। जब आंख से किसी के शरीर को वासना के विचार से देखते हैं तब यह हिंसा है। आप अदालत में नहीं पकड़े जा सकते हैं क्योंकि अदालत के पास आंखों से किए गए बुरे को पकड़ने का अब तक कोई उपाय नहीं है।
आंख के भटकने सेभी होती है हिंसा
जब आंख किसी के शरीर पर पड़ी और आंख ने एक क्षण में उस शरीर को चाह लिया, पसंद कर लिया, एक क्षण में उस शरीर की कशिश में तड़पने लगा तो इस कामना का धुआं चारों तरफ फैल गया। आंख से जो कर्म किया तो आंख शरीर का हिस्सा है। आंख के पीछे आपकी आत्मा है। आंख से हुआ, आपने किया, हिंसा हो गई। हिंसा सिर्फ छुरा घोंपने से नहीं होती, आंख के भटकने से भी हो जाती है।
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