महात्मा गांधी के प्रजातंत्र और बाबा साहेब के संविधान पर संकट का दौर

मारे देश का संविधान बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के नेतृत्व में संविधान सभा ने बनाया था। उनका विश्वास था कि इस संविधान से एक आदर्श राष्ट्र का निर्माण होगा और भारत की राजनीति ‘सिद्धांत की राजनीति’ होगी, ‘नैतिकता की राजनीति’ होगी तथा उसमें स्वच्छता बरकरार रहेगी। यही विचार कर संविधान के प्रावधान निर्मित किए गए। संविधान में उपचुनाव का प्रावधान भी किया गया। कल्पना यह थी कि इसका उपयोग सिर्फ तभी होगा, जब किसी माननीय सदस्य का अकस्मात निधन हो जाए। बाबा साहेब और संविधान सभा ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि देश में ऐसा राजनीतिक परिदृश्य पैदा होगा, जिसमें सौदा कर विधायकों के इस्तीफे कराकर उपचुनाव थोपे जाएंगे। देश में उपचुनाव अब से कुछ समय पहले तक सम्मानीय सदस्य के निधन के कारण होते रहे हैं, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में उपचुनाव लोभ और लालच के कारण होंगे। क्या देश और प्रदेश की जनता कभी इसे स्वीकार करेगी? हाल ही में मध्यप्रदेश में जिस तरह से चुनी हुई सरकार को अपदस्थ किया गया, उससे भारतीय संविधान और प्रजातंत्र की नींव हिल गई है।
केंद्र में आज जो पार्टी सत्तारूढ़ है, उसका दावा है कि वह राजनैतिक शुचिता और स्वच्छ लोकतांत्रिक मूल्यों वाली पार्टी है। आज यह पार्टी प्रतिपक्षी विधायकों के इस्तीफे कराकर, स्वयं की सरकार बना रही है। अरुणाचल, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, कर्नाटक एवं मध्यप्रदेश में निर्वाचित सरकारों को अनैतिक रूप से गिराया गया। महात्मा गांधी ने कहा था- ‘यदि हम देश में लोकतंत्र की सच्ची भावना को स्थापित करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते हैं।’ आज भारतवर्ष की परिस्थिति यही है और यह हमें प्रेरित करती है कि संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक उपचार किए जाएं। हाल ही में मध्यप्रदेश के घटनाक्रम को पूरे देश ने देखा है कि किस प्रकार एक राजनैतिक दल ने पूरे देश को कोरोना की महामारी की आग में झोंककर अपनी सत्ता की प्यास बुझाई। मप्र में 25 विधायकों के इस्तीफे कराकर केंद्र में शासित पार्टी ने अपनी तथाकथित स्वच्छ राजनीति का खुलासा कर दिया। संविधान निर्माताओं को लेशमात्र भी आभास होता कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों से इस तरह का खिलवाड़ किया जाएगा तो वे निश्चित ही संविधान में इसके लिए उचित प्रावधान करते। ऐसी परिस्थितियों के समाधान के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी जी ने वर्ष 1985 में दलबदल कानून को संसद में पारित कराया था। उन्होंने सदन में कहा था कि यह कानून सार्वजनिक जीवन में सफाई की ओर पहला कदम है।
आज की परिस्थितियों में देश को सबसे बड़ी उम्मीद न्यायपालिका से है। संविधान का भी उद्देश्य यही था कि न्यायपालिका अप्रत्याशित स्थितियों में देश की रक्षक बनेगी। आज आमजन को इस पर विचार करना है कि इस उद्देश्य की पूर्ति कितनी हाे पा रही है? आज जो देश में किया जा रहा है, उससे हमारे संविधान और लोकतंत्र को संकट पैदा हो गया है। अगर यही स्थिति निरंतर रहती है तो बाबा साहेब की यह आशंका सही साबित होगी कि इस देश का संविधान अच्छे लोगों के हाथ में रहेगा, तभी यह अच्छा सिद्ध होगा। आज मध्यप्रदेश और समय की भी यह पुकार है कि आम जनता राजनीतिक दल और उसके उम्मीदवार की पहचान के साथ-साथ सच्चाई को पहचाने और यह संदेश दे कि भारतीय समाज सदैव सच्चाई के साथ खड़ा है। सच्चाई का यही साथ लोकतंत्र की गौरवशाली पहचान को विश्व में कायम रख पाएगा। आइए, हम सभी भारतवासी पूरी दृढ़ता और मजबूती से सच्चाई के साथ खड़े हों।
(इस लेख में दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।)



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Period of crisis on Mahatma Gandhi's democracy and Babasaheb's constitution


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