अटल जी की दशा देखकर होश खो बैठे थे उनके दोस्त, कहा- हिम्मत करके भी मैं सिर्फ उनके कदमों तक ही जा सका
करीब ढाई साल पहले अटलजी के बचपन के दोस्त शैवाल सत्यार्थी अटलजी से मिलने दिल्ली गए थे। ग्वालियर के रहने वाले शैवालजी ने कहा था- वह मेरे लिए कृष्ण और मैं साहित्यजीवी मित्र सुदामा हूं। उनकी हालत देख इतना दुख पहुंचा कि मैं शून्य की स्थिति में चला गया लेकिन यह देखकर गदगद हो गया कि इतनी खराब हालत में भी अटलजी ने मुझे पहचान लिया। अटलजी के परिवार के सदस्यों के अलावा कई परिचित ग्वालियर में हैं। लेकिन जब बचपन के दोस्तों की बात आती है तो उनमें सबसे पहले नाम आता है रामबाग कॉलोनी में रहने वाले मनराखन मिश्र और शैवाल सत्यार्थी का। 3 साल मनराखन मिश्र इस दुनिया से विदा हो गए। अब शैवाल सत्यार्थी हैं जो उनके बचपन की यादों को सहेजे हुए हैं।
- अटलजी शैवाल से थोड़े बड़े थे लेकिन पड़ोसी होने के नाते उन दोनों की गहरी दोस्ती थी। अटलजी से प्रभावित शैवाल ने भी उन्हीं संस्थाओं से पढ़ाई की जहां अटलजी पढ़े। अटलजी ने शैवाल से कहा था- दोस्त का मतलब यह नहीं होता कि हर वक्त दोस्त का समर्थन किया जाए, बल्कि सच्चा दोस्त वह होता है जो गलत करने पर सही राह दिखा सके।
- शैवाल ने बताया, स्कूल में अटलजी उनके सीनियर थे, एक डिबेट में उन्हें जज बनाया गया था। उन्होंने भी उसमें भाग लिया था, लेकिन एक लड़की से डिबेट करते वो नर्वस हो गए। उन्हें उम्मीद थी जज अटलजी हैं तो नर्वसनेस को नजरअंदाज करके मुझे अच्छे मार्क्स देंगे लेकिन अटलजी ने मुझे ‘0’ दिया। पूछने पर बताया कि अभी बैसाखी दे दूंगा तो तुम विकलांग ही रह जाओगे।
अटल जी की दशा देखकर शून्य में चला गया था उनका ये दोस्त
- उन्होंने बताया, अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बन ग्वालियर आए तो मनराखन मिश्र जी और मुझे विशेष तौर पर मिलने बुलाया। घर के बने पकवान मंगाए और साथ बैठकर खाए।
- हाल ही में शैवाल सत्यार्थी को दिल का दौरा पड़ा, लेकिन स्वस्थ हो गए। उस वक्त उनकी इच्छा हुई कि अटलजी से मिलना चाहिए। वह दिल्ली पहुंचे और उनके मिलने के लिए आवेदन की औपचारिकता प्रक्रिया पूरी की। उनका आवेदन अटल की देखरेख कर रहे झींगटा जी तक पहुंचा, उन्होंने अटलजी के सामने ग्वालियर से शैवाल सत्यार्थी नाम पढ़ा। बोलने में कठिनाई महसूस कर रहे अटलजी ने झींगटा को इशारे से मेरे लिए तत्काल सारे इंतजाम करने का निर्देश दिया।
- शैवाल ने बताया, जैसे ही वह अटलजी के रूम पहुंचे, एक बड़े बेड पर उन्हें चादर ओढ़े लेटे देखा। उनकी दुर्बल दशा देखकर मुझे गहरा सदमा पहुंचा और मैं कुछ देर तक वहां शून्य की तरह खड़ा रहा। झींगटा जी ने थोड़ा झकझोरा और आगे आने के लिए कहा तब मुझे होश आया।
- शैवालजी ने बताया, ‘सूर्य जैसे तेजस्वी अटलजी की हालत देख कर मैं शून्यवत रह गया, और बुलाने पर होश में आया तो बस उनके कदमों तक ही जाने का साहस जुटा सका।
- अटलजी लगभग स्मृति लोप की स्थिति में मिले, इसके बावजूद जब झींगटाजी ने नाम लेकर मेरी ओर इशारा किया तो अटलजी की आंखों से आंसू बहने लगे और चेहरे पर मुस्कान के भाव आ गए। झींगटाजी ने आश्चर्य से बताया- लंबे अरसे बाद किसी को देखकर अटलजी के चेहरे पर मुस्कान और आंखों में किसी तरह की प्रतिक्रिया आई।
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