‘संजा फूली आगणअ माय, कि पूजनअ चलो जी, चांद सूरजअ दुई भाई

पितृ पक्ष के साथ ही संजा का त्योहार बुधवार से शुरू हुआ। निमाड़ में यह त्योहार 16 दिन तक मनाया जाएगा। इसमें कन्याएं घरों के बाहर दीवारों पर गोबर से फूल और चांद-सितारों की आकृतियां बनाएंगी। पहले दिन कन्याओं ने गोबर से संजा माता की आकृति बनाई। शाम होते ही कन्याओं ने ‘’संजा फूली आगणअ माय, कि पूजनअ चलो जी, चांद सूरजअ दुई भाई, कि मीलणअ चलोजी। कि जिनका हाथअ सोन्ना की तलवार, कि धोला घोड़ा पर अवसार। कि जिनका माथअ पचरंग पाग, कि जनिका गला मंअ सतरंग हार। संजा फूली आंगणअ माय, कि पूजन चलो जी। चांद सूरज दुई भाई, कि मीलन चलो जी।” लोकगीत के साथ यह त्योहार शुरू हुआ।
अर्थात “संध्या आंगन में उतर आई है। आओ उसका पूजन करें। चांद और सूरज दोनों भाई खड़े हैं। आओ उनसे मिलने चलें। उनके हाथों में (किरणों रुपी) सोने की तलवार है। और वे (प्रकाशरूपी) सफेद घोड़े पर सवार है। उनके सिर पर पचरंगी पगड़ी बंधी है और वे अपने गले में इंद्रधनुषी सतरंगी हार पहने हैं। संझा आंगन में उतर आई है। आओ उसका पूजन करें। चांद ओर सूर्य दोनों भाई खड़ें हैं, आओ उनसे मिलने चले। “ गीत गाकर पर्व की शुरुआत की। इसके साथ ही “तुम तो जोओ संजा बेण सासर” जैसे गीत गाकर संजा माता का पूजन किया।
खेत-खलियानों की बागुड़ों
में खिले फूलों की तरह कन्याएं मनाती है संजा का त्योहार
शहर की लोक कलाकार साधना हेमंत उपाध्याय के अनुसार कुंआर माह में बादल घटने लगते हैं, संध्या रंगीन होकर उतरती है। खेत-खलियानों तक की बागुड़ों पर फूल खिल आते हैं। फूलों की तरह कन्याओं द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। हर दिन गाय के गोबर से संजा देवी और चांद-सूरज की आकृतियां बनाएंगी। इन्हें फूलों की पंखुड़ियों से सजाया जाएगा। सांझ, फूल और बच्चों का खेल अंधेरा होने तक चलता रहता है।
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