चौधरी का सामना भितरघात के अपने इतिहास से; कांग्रेस प्रत्याशी के पास हिसाब चुकता करने का माैका

(मुकेश माथुर) भितरघात का इतिहास। अब दलबदल। पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों का हक मार आगे बढ़ जाने की पहचान। हाटपिपल्या में भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर जरूर है, लेकिन केंद्र में हैं, सिंधिया के साथ भाजपा में आकर संभावित प्रत्याशी बने मनोज चौधरी। ये सभी आरोप उन पर ही हैं। मतदान तक इन आरोपों और विरोधियों के मन में दबे गुस्से को चौधरी संबाेधित करते रहेंगे।
चौधरी की मुखालफत कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे विधायक रहे दीपक जोशी ने कह दिया है कि उनकी नाराजगी दूर हो गई है, लेकिन चार बार एमएलए रहे तेजसिंह सेंधव ने निर्दलीय लड़ने की घोषणा कर दी है। कांग्रेस प्रत्याशी राजवीर सिंह बघेल पहला चुनाव लड़ रहे हैं। 2008 में मनोज के पिता नारायण चौधरी ने बागी होकर चुनाव लड़ा और राजवीर के पिता राजेंद्रसिंह बघेल को हरवा दिया था। 2018 में राजवीर के पिता का टिकट कटवा कर मनोज चौधरी प्रत्याशी बन गए।
अब राजवीर सारे हिसाब चुकता कर सकते हैं। चौधरी खाती, पाटीदार, धाकड़ मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट कर जीतने की आस लगाए हैं। पिछले चुनाव में जो तबके भाजपा के प्रति रुझान के कारण चौधरी के खिलाफ थे, उन्हें अब चौधरी अपनी ताकत बनाने की कोशिश में हैं।
विकास से दूर... परिवारों की प्रतिष्ठा के बीच पिसते रहे मतदाता
बड़े नामों और परिवारों की प्रतिष्ठा से जुड़े यहां के चुनाव आम आदमी की उम्मीदें कभी नहीं पूरी कर पाए। हाटपिपल्या से पांच किलोमीटर दूर कालीसिंध नदी पर बना देवगढ़ का पुल सबसे बड़ा गवाह है। हर बारिश में 50 से 60 गांवों का बाकी जगह से संपर्क टूट जाता है। परेशान लोगों को अपने निवास पर आसरा देने वाले अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के तेजसिंह राणा बताते हैं- 40 साल पहले दूसरे पुल का भूमिपूजन हुआ था, वह आज तक नहीं बन पाया। किसान कर्जमाफी का सवाल इस सीट पर भी उठता रहेगा।
कुछ किसान कमलनाथ सरकार को पहल के लिए साधुवाद देते हैं तो कुछ भंवरसिंह राणावत जैसे भी हैं जो कहते हैं-दो लाख तक का कर्जा माफ होगा, इस आस में पैसा नहीं चुकाया और फिर ब्याज और लग गया। किसान बताते हैं कि करीब 50 गांव ऐसे हैं, जिन्हें फसल बीमा का एक भी रुपया नहीं मिला। उपेक्षा का दूसरा प्रतीक है हाटपिपल्या के हर घर के बाहर मिलने वाला पानी का ड्रम। पूरा गांव टैंकर पर निर्भर है। पूर्व मंत्री दीपक जोशी जिस महाकाल मार्ग पर रहते हैं, वहां तक जलापूर्ति का यही हाल है। नाराज लोग उनके घर के बाहर आकर मटके फोड़ चुके हैं। चुनावी कलश यात्राएं करवाने वाले नेताओं पर मटकों के फोड़े जाने से फर्क नहीं ही पड़ता है, हम जानते हैं।
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