64 लाख का भुगतान लेने के बाद बिल में डला जीएसटी नंबर, सिर्फ वित्तीय वर्ष का ईपीएफ दिया

कलेक्टाेरेट के जिला निर्वाचन कार्यालय में दतिया की भावना कंप्यूटर फर्म पिछले 28 माह से कलेक्टर के अनुबंध पर 18 कर्मचारियों को नियुक्त कर कार्य कर रही है। यह संस्था पिछले 27 माह में बिना जीएसटी नंबर के बिल लगाकर 64 लाख का भुगतान ले चुकी है। संस्था अब तक कर्मचारियों के ईपीएफ, ईएसआईसी और जीएसटी के नाम पर 17 लाख का गबन कर चुकी है। अब संस्था ने नवंबर माह का बिला 16 दिसंबर को जीएसटी नंबर के साथ भुगतान के लिए भेजा है।

बता दें कि दतिया की भावना कंप्यूटर फर्म ने 28 दिसंबर 2016 में तत्कालीन कलेक्टर रमेश भंडारी की अनुशंसा पर जिला निर्वाचन कार्यालय के कार्य को कर्मचारियों के माध्यम से कराने के लिए अनुबंध किया। अनुबंध की शिकायत हो जाने पर फर्म ने जून 2018 से जिले की 6 विधानसभाओं में सहायक प्रोग्रामर व डाटा इंट्री ऑपरेटर सहित 18 कर्मचारी नियुक्त कर कार्य शुरू किया।

तब से संस्था संचालक प्रतिमाह केंद्र सरकार के टैक्स जीएसटी, कर्मचारियों को दिए जाने वाले ईपीएफ और ईएसआईसी दर्शाकर निर्वाचन कार्यालय से 63,85851 रुपए की राशि का भुगतान करा चुकी है। जिसमें फर्म ने इन कर्मचारियों के ईपीएफ व ईएसआईसी सहित जीएसटी के 17 लाख का गबन किया। इस संबंध में दैनिक भास्कर ने 13 अक्टूबर को प्रमुखता से खबर को प्रकाशित किया था। अब संस्था ने नवंबर माह का बिल 16 दिसंबर को जीएसटी नंबर डालकर कार्यालय को भेजा है।

सिर्फ इस वित्तीय वर्ष का ईपीएफ कर्मचारियों को मिला, बाकी के माह का ईपीएफ संस्था संचालक ने गोल किया
दतिया की भावना कंप्यूटर फर्म 28 दिसंबर 2016 में से जिला निर्वाचन कार्यालय में 18 कर्मचारियों को नियुक्त कर कार्य कर रही थी। अब संस्था 2 सहायक प्रोग्रामर और 12 डाटा एंट्री ऑपरेटर सहित 14 कर्मचारी से कार्य करा रही है। खबर प्रकाशित होने के बाद संस्था संचालक ने जीएसटी नंबर डालने के साथ इस वित्तीय वर्ष में मार्च से अब ताक का ईपीएफ कर्मचारियों के खाते में डाल दिया। पर बाकी के माह का ईपीएफ संस्था संचालक गोल कर गया। जबकि जिला निर्वाचन अधिकारियों को इस ओर ध्यान देते हुए पूरे ईपीएफ का भुगतान कराना चाहिए। ताकि कर्मचारियों का आर्थिक नुकसान न हो।

कर्मचारियों का ईपीएफ जल्द ही उनके खाते में डाल दिया जाएगा
भावना कंप्यूटर फर्म पिछले पांच माह से अपने बिलों में जीएसटी नंबर नहीं दे रही है। पिछले दिनों फर्म के बिल में जीएसटी नंबर अंकित नहीं था, जीएसटी का भुगतान संस्था हर माह कर रही थी। जिला निर्वाचन कार्यालय में कार्यरत अधिकांश कर्मचारियों का ईपीएफ खाते में डाल दिया गया है। कुछ कर्मचारियों का शेष है, जिसे जल्द ही पहुंचा दिया जाएगा।
- विश्वेंद्र खरे, फर्म संचालक



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छतरपुर| इस बार जीएसटी नंबर डलकर आया बिल।


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