जनभागीदारी के कर्मचारियों को आदेश के बाद भी दिया केवल 10 दिन का वेतन

उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के कॉलेजों में सबसे कम वेतन दर पर काम करने वाले जनभागीदारी शिक्षकों को वेतन देने के निर्देश दे दिए हैं। एनएसयूआई ने जनभागीदारी के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने से लॉकडाउन में आर्थिक संकट से संबंधित शिकायत की थी। इसके बाद विभाग ने सामान्य प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए वेतन जारी करने के आदेश जारी किए हैं। आदेश मिलने के बाद भी जनभागीदारी के कर्मचारियों को नियमों का हवाला देकर केवल 10 दिन का वेतन ही जारी किया है। जो 6 हजार रुपए से भी कम है।
यह हाे सकता है हल
लाॅकडाउन जैसी स्थिति में जॉब से बाहर करने की बिना कर्मचारी की सहमति के नियमानुसार गलत है। केंद्र और राज्य सरकारों ने कर्मचारियों को वेतन देने में स्पष्ट निर्देश दिए हैं। जनभागीदारी सचिव के प्रस्ताव कर अध्यक्ष इसे अनुमोदित करते हैं। ब्रेक के 2 माह निर्धारित नहीं हैं ऐसे में सामान्य प्रशासन के निर्देश पर कर्मचारियों को वेतन दिया जाए और स्थिति सामान्य होने पर जब नियमित कक्षा संचालित हो तब पूर्व सूचना से जनभागीदारी के नियम से 2 माह के ब्रेक का प्रावधान पर किया जाए। एनएसयूआई प्रदेश सचिव रोहन जैन ने बताया जनभागीदारी शिक्षकों को विषम स्थिति में नियमानुसार अधिक सहयोग करने संबंधी निर्णय लेना चाहिए।

डॉ. कामिनी जैन, प्राचार्य लीड कॉलेज ने कहा-मार्गदर्शन लिया जा रहा है
वर्तमान जनभागीदारी अध्यक्ष कलेक्टर से जनभागीदारी के कर्मचारियों के वेतन के संबंध में मार्गदर्शन लिया जा रहा है। शिक्षकों को 10 दिन और चतुर्थ वर्ग एवं सफाई कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की अनुशंसा की गई है।

निर्देश और नियम में उलझे प्राचार्य
जनभागीदारी के कर्मचारियों को नियुक्त करने और वेतन देने का अधिकार स्थानीय जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष और सचिव को होता है। अध्यक्ष मनोनीत सदस्य या कलेक्टर होते हैं जबकि सचिव प्राचार्य होते हैं।जनभागीदारी कर्मचारियों को 10 माह के कार्यावधि के बाद 2 माह का ब्रेक दिया जाता है। ऐसे में दो माह का वेतन नहीं मिलता, लेकिन परीक्षा और मूल्यांकन जैसी गतिविधियों से मानदेय प्राप्त होता है। जो लॉकडाउन के कारण नहीं मिलने से आर्थिक संकट बढ़ रहा है।



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