घरों से निकली पॉलीथिन को अलग लिया, बिल्डिंग मटेरियल से बनाए ब्लॉक-पेवर ने उज्जैन को दिलाया थ्री स्टार का दर्जा

प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट, हैंगिंग गार्डन, सीएंडडी प्लांट, जीरो वेस्ट वार्ड और ओडीएफ डबल प्लस ने शहर को स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के स्टार रेटिंग में थ्री स्टार का दर्जा दिलाया है। 2019 के सर्वेक्षण में भी हम इसी पायदान पर थे। एक साल में शहर के घरों से निकले कचरे में से गीला-सूखा कचरा अलग करने के साथ पॉलीथिन को भी अलग करने का प्रयास किया। इसके अलावा शहर में 20 माइक्रोन से कम मानक वाली पॉलीथिन पर पाबंदी लगाई। केंद्रीय आवास और शहरी मंत्रालय ने मंगलवार को स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के तहत स्टार रेटिंग जारी की। इसमें उज्जैन और भोपाल को थ्री स्टार रेटिंग मिली है। स्टार रेटिंग में प्रदेश के 18 शहर शामिल हैं, जिसमें 5 स्टार में एकमात्र इंदौर है। इसके अलावा थ्री स्टार में 10 और वन स्टार में 7 शहरों ने स्थान पाया है। स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरुआत के बाद स्टार रेटिंग का यह दूसरा अवसर है। शहर ने लगातार दूसरी बार थ्रीस्टार का दर्जा हासिल किया है।
सीवरेज के कारण खुदी सड़कों से पिछड़ी रेकिंग
सीवरेज के काम के कारण नए शहर के साथ कॉलोनियों की सड़कें खुदी पड़ी थी। यही कारण है कि हमारी फाइव स्टार की दावेदारी के बावजूद थ्री स्टार मिला। फिर भी खुशी है कि हम आगे बढ़े नहीं तो कम से कम पीछे भी नहीं गए। मीना जोनवाल, महापौर
प्रतिस्पर्धा कड़ी थी, जो कमियां हैं, वो दूर करेंगे
स्वच्छ सर्वेक्षण में इस बार प्रतिस्पर्धा ज्यादा थी। कई शहर तो अपनी पिछली रेटिंग भी नहीं बचा सके। शहर में जिन स्थानों पर सौंदर्यीकरण की दरकार है वहां काम करवाएंगे। जहां कमियां हैं, उन्हें दूर करेंगे।
ऋषि गर्ग, आयुक्त नगर निगम :5 प्रयास जिनके कारण फिर थ्री स्टार
1 प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट : 54 वार्ड में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के तहत डोर टू डोर कचरा संग्रहण वाहन मेें गीला, सूखा कचरा अलग लेने के साथ पॉलीथिन अलग करने की समझाइश दी। असर यह हुआ रहवासियों ने गीले कचरे से घरों में खाद बनाया।
2 हैंगिंग गार्डन : शहर के सौंदर्यीकरण के क्रम में हरिफाटक पुल के नीचे, नगर निगम मुख्यालय, ग्रांड होटल परिसर में हैंगिंग गार्डन बनाया, जिससे सफाई के साथ सुंदरता में भी बढ़ोतरी हुई। कम जगह और कम पानी में पनपने वाले इन पौधों ने शहर की रेटिंग बढ़ाने में मदद की।
3 सीएंड डी प्लांट : एमआर-5 पर लगाए सीएंड डी प्लांट में शहर के पुराने घरों से निकले मलबे से ब्लॉक-पैवर बनाए। इनका उपयोग शहर में उन स्थानों पर किया गया जो काम निगम के जरिए होना था। इससे पुराने मटेरियल का भी उपयोग होने लगा।
4 जीरो वेस्ट वार्ड : ऐसे वार्ड जहां से गीले के साथ सूखा कचरा नहीं लिया जाता। इसकी शुरुआत वार्ड 36 से हुई। निगम उपायुक्त योगेंद्र पटेल का दावा है कि वहां पर 90 फीसदी घरों में जीरो वेस्ट निकल रहा है। बाद में इसमें वार्ड 47 भी शामिल हो गया।
5 ओडीएफ डबल प्लस : खुले में शौच मुक्त शहर के मानकों पर शहर खरा उतरा या नहीं, इसे देखने के लिए केंद्र सरकार की एक टीम दिसंबर में आई थी। उसने विभिन्न स्थानों पर सर्वे के बाद शहर को ओडीएफ डबल प्लस का दर्जा दिया।
नौ कैटेगरी में शहर को 100 में से 100 अंक मिले
स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए की गई स्टार रेटिंग में उज्जैन को लगातार दूसरी बार थ्री स्टार मिले हैं। हालांकि उज्जैन की तैयारी फाइव स्टार के लिए थी लेकिन इंदौर सहित पांच शहर को यह दर्जा दिया गया। भास्कर ने पूरे रिजल्ट का एनाॅलिसिस किया तो पता चला हमने रिजल्ट के लिए तीन कैटेगरी अनिवार्य, आवश्यक और वांछित कार्यों में 93, 75.5 और 65 प्रतिशत अंक मिले। हमें इस बार मुख्य रूप से यूजर्स चार्जेस वसूली, पॉलिथिन प्रतिबंधित, सीएंडडी कलेक्शन, लिटर बिन, सार्वजनिक स्थलों पर सफाई और सूखा कचरा उपयोगी बनाने पर ज्यादा मेहनत करना होगी क्योंकि इन्हीं बिंदुओं पर हमारे नंबर कटे हैं। हालांकि नौ कैटेगरी में हमें 100 में से 100 अंक मिले। इनमें डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन, कचरा अलग करना, गीले कचरे से खाद बनाना, सूखे कचरे से खाद बनाना, जुर्माना लगाना, वेस्ट पानी का उपयोग, स्टोरेज बिन, गिला कचरा उपयोगी बनाना और नालों की सफाई शामिल हैं।
कबाड़ से कलाकृतियां भी बनाई, नुक्कड़ नाटक किए
120 दिन चला सफाई अभियान
10 लाख रुपए खर्च किए साफ-सफाई में
2550 सफाई कर्मचारी तैनात
201 टन कचरा रोज निकलता
35टन खाद बन रही है कचरे से
90 डोर टू डोर कचरा कलेक्शन वाहन चल रहे हैं शहर में
1 क्विं. अगरबत्तियां बन रही है फूलों से
155 लोगों के दल ने एप डाउनलोड कराए
25 हजार लोगों ने डाउन लोड किया स्वच्छता एप
10 रैलियां, सभाएं की निगम की
20 जगह पर शहर में नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया
60 दीवारों पर रंग-बिरंगे चित्र बनवाए
25 जगह पर कबाड़ से बनाई कलाकृतियां लगवाई
5 कमियां जिनसे 5 स्टार नहीं मिल सके
1 सीवरेज का काम : घरों से निकले गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए बने प्रोजेक्ट का काम चलने से आधे शहर की अधिकांश सड़कें खुदी पड़ी थी। इसी दौरान स्वच्छ सर्वेक्षण भी हुआ, जिससे सिटीजन फीडबैक अच्छा नहीं रहा।
2 आयुक्त का बदलाव : स्वच्छ सर्वेक्षण की तैयारियों के बीच एक साल में नगर निगम में तीन आयुक्त बदल गए। प्रतिभा पाल का स्थानांतरण होने के बाद क्षितिज सिंघल को प्रभारी बनाया। उसके बाद ऋषि गर्ग ने पदभार संभाला जिससे व्यवस्था पर असर पड़ा।
3 नालियां का खुला होना : शहर में 27 बड़े नाले हैं, जो अधिकांश जगह से खुले हैं। ऐसे में स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए आई टीम के सदस्य लोगों से फीडबैक लेने पहुंचे तो उन्होंने सफाई नहीं होने की बात कही।
4 जागरुकता में कमी : नगर निगम ने दो अन्य सहयोगी एजेंसियों से रहवासियों को जागरूक किया। इसके बावजूद कई स्थान ऐसे रहे जहां पर टीम पहुंच ही नहीं पाई, जिसका नतीजा यह रहा कि रहवासी यह जान ही नहीं पाए।
5 पॉलीथिन पर पाबंदी बेअसर : निगम ने पॉलीथिन पर पाबंदी का दावा तो किया लेकिन वह बेअसर रही। शहर के मुख्य बाजारों से लेकर कॉलोनियों की दुकानों में पॉलीथिन का उपयोग न तो बंद हुआ न ही उसमें कमी आई।
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