ग्रहों की उल्टी चाल और तीन ग्रहण, जून-जुलाई में फिर संक्रमण की आशंका

कोरोना के संक्रमण के चलते राहत की उम्मीद जता रहे ज्योतिषी जून-जुलाई में फिर संक्रमण बढ़ने की आशंका बता रहे हैं। इस दौरान अनेक ग्रहों की चाल बदलेगी। तीन ग्रहण भी आ रहे हैं। इनका प्रभाव लोगों की जिंदगी के साथ आर्थिक क्षेत्र में दिखाई देगा। प्राकृतिक आपदाओं की संभावना भी बताई जा रही है।
भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के निदेशक पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक कहते हैं मंगल के मकर से कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही मकर राशि में मंगल-शनि-गुरु की युति भंग हुई। इस युति के भंग होने से राहत महसूस की गई लेकिन यह राहत ज्यादा समय की नहीं है। शनि 11 मई से 29 सितंबर तक मकर में वक्री होंगे। इसी में गुरु 14 मई से 12 सितंबर तक वक्री रहेंगे। शुक्र 13 मई से 24 जून तक वृषभ में और बुध 18 जून से 11 जुलाई तक मिथुन में वक्री होंगे। राहु- केतु मिथुन तथा धनु में वक्री होंगे। इस तरह पांच ग्रह चाल बदल कर वक्री होकर कहर बरपा सकते हैं। वैदिक ने बताया शनि और गुरु का एक साथ मकर में वक्री होना, पश्चिमी देशों में उथल पुथल मचा सकता है। मकर राशि शनि की स्वराशि है और गुरु की नीच राशि है। दोनों ग्रहों का आपसी द्वंद्व विश्व की अर्थ व्यवस्था को अस्त व्यस्त कर सकता है। स्टॉक मार्केट में गिरावट हो सकती है। पांचों ग्रह तीन राशि वृषभ,मिथुन और मकर को प्रभावित कर सकते हैं।
एक महीने में तीन ग्रहण से होगा सामना
वैदिक के अनुसार जून, जुलाई के मध्य 2 चंद्र ग्रहण तथा 1 सूर्य ग्रहण होंगे। दोनों चंद्र ग्रहण उप छाया (मान्द्य) होंगे जो क्रमशः 5-6 जून की दरमियानी रात और 5 जुलाई को होंगे। कंकणाकृति सूर्य ग्रहण 21 जून को होगा। 21 जून को आषाढ़ मास की अमावस्या, मृगशीर्ष नक्षत्र, मिथुन राशि में होने वाला इस सूर्य ग्रहण 12 मिनिट भारत, बंगलादेश, भूटान, श्रीलंका के कुछ शहरो में दिखाई देगा। शास्त्रों के अनुसार एक माह के मध्य दो या दो से अधिक ग्रहण पड़ जाए तो राजा को कष्ट, सेना में विद्रोह, आर्थिक समस्या जैसी स्थिति निर्मित होती है। संहिता ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है की यदि यह स्थिति आषाढ़ माह में बने तो आजीविका पर मार होती है। चीन को लेकर वैश्विक स्तर पर कोई कठोर निर्णय पुरे विश्व को शीत युद्ध की ओर ले जा सकता है।
आज से शनि चार महीने वक्री होंगे
शनि सोमवार सुबह 9.09 बजे अपनी स्वराशि मकर में वक्री होंगे। उसके बाद 29 सितंबर से शनि पिता के नक्षत्र उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण में वक्री होंगे और 29 सितंबर को उत्तराषाढ़ा दूसरे चरण में मार्गी होंगे। पं अंकित व्यास के अनुसार इस प्रकार शनि 4 माह 18 दिन के लिए वक्रीय होंगे। शास्त्र कहता है जब कोई पापी ग्रह वक्री चलता है तो उसका प्रभाव पृथ्वी पर ज्यादा होता है। शनि, सूर्य और छाया की संतान है। शनि और गुरु का एक साथ मकर में वक्री होना, पश्चिमी देशों में उथल पुथल का कारण बन सकता है। उन्हें न्याय के देवता कहा गया है। वे अच्छे काम का अच्छा नतीजा और बुरे काम का बुरा फल देते हैं। शनि के वक्री होने से नौकरी व श्रमिक वर्ग में असंतोष रहेगा। रोग का भय बढ़ेगा।
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