घायल को ब्लड के लिए कई डोनर्स को लगाए फोन, शाम तक भी नहीं पहुंचे तो डॉक्टरों ने ही खून देकर बचाई जान

नीता सिसौदिया,लॉकडाउन का प्रभाव रक्तदान पर भी पड़ा। एमवायएच में इस अवधि में मात्र 623 यूनिट ब्लड इकट्ठा हो पाया जबकि यहां शहर का सबसे बड़ा ब्लड बैंक है और हर माह औसतन ढाई से तीन हजार यूनिट रक्तदान होता है। लॉकडाउन में 500 से 800 यूनिट ही रक्तदान हुआ। डॉक्टरों के मुताबिक रक्तदाता अब भी अस्पताल जाने से डर रहे हैं। शनिवार को ही पांच लोगों को फोन लगाया तो सभी का जवाब था कि बाहर कहीं ब्लड दे देंगे लेकिन अस्पताल नहीं आएंगे। बीते दो माह में कुल होने वाले डोनेशन की तुलना में 30 फीसदी ही ब्लड डोनेट हुआ।

सुबह से शाम तक कोई नहीं आया तो स्टाफ ने दिया ब्लड
लॉकडाउन मेंं छूट मिलने के बाद 22 मई को एक परिवार पुणे से इंदौर आ रहा था। इसी बीच वह हादसे का शिकार हो गया। ब्लड बैंक से कई डोनर्स को फोन लगाए गए लेकिन शाम तक ब्लड की व्यवस्था नहीं हो पाई। शाम को अस्पताल के ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, नर्स और डॉक्टर्स ने ब्लड डोनेट कर उनकी जान बचाई। जूनी इंदौर की निशा ने बताया 9 साल की बेटी का ब्लड ग्रुप एबी-पॉजिटिव है। हर 20 दिन में ब्लड चाहिए। दो बार तो पिता ने ब्लड दे दिया लेकिन अब बेटी को ब्लड नहीं मिल रहा है।

सेंधवा और सांवेर से भी बुलवाया रक्तदाताओं को
ब्लड डोनर्स इंदौर के मनोज श्रीवास्तव ने बताया, लॉकडाउन में डोनर्स के लिए पास की व्यवस्था नहीं थी इसलिए समस्या आई। कोरोना का डर भी था जो अब भी थोड़ा बाकी है। लॉकडाउन में सांवेर और सेंधवा से भी रक्तदाता बुलवाए। सुनील गुप्ता ने बताया, एमवाय में एक गंभीर बीमार बच्ची के लिए उन्हें एक एसडीपी डोनर की व्यवस्था करने में चार से पांच घंटे लग गए थे। डोनर को वे खुद घर लेने और छोड़ने भी गए।

ब्लड डोनेशन में सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है
ब्लड बैंक पूरी तरह सुरक्षित हैं। डोनर्स की स्क्रीनिंग और सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
- डॉ. अंकिता पाटिल, डेप्यूटी डायरेक्टर ब्लड सेफ्टी
अस्पताल आने से बच रहे
पहले दस डाेनर्स को फोन करते थे तो छह आ जाते थे, अब एक-दो ही आते हैं। लोग अस्पताल आने के लिए तैयार नहीं होेते। हमने पिक-अप और ड्रॉप की सुविधा के लिए गाड़ी की व्यवस्था भी कर दी है।

- डॉ. अशोक यादव, ब्लड बैंक डायरेक्टर, एमवायएच



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