5128 श्रमिक लौटे, 1577 को मनरेगा में काम दिलाने का दावा, आधे की पोर्टल पर एंट्री नहीं

लॉकडाउन के दौरान बाहर से वापस लौटे मजदूरों को जिला प्रशासन स्थानीय स्तर पर काम दिलाने में फेल हो गया। स्थिति यह है कि ऐसे लोगों को सिर्फ मनरेगा के तहत मजदूरी दिलाने का ही दावा किया जा रहा है। ऐसे में इन लोगों को मजबूरन काम की तलाश में वापस दूसरे प्रदेशों का रूख करने की नौबत आ गई।
बाहर से आए इन श्रमिकों को काम दिलाने के लिए अधिकारियों के सारे प्रयास नाकाम साबित हुए। प्रत्येक मजदूरों के काम और उनके कौशल संबंधी जानकारी दर्ज करने के बाद भी उन्हें स्थानीय स्तर पर काम नहीं मिल सका। ऐसे में काम दिलाने के नाम पर शाजापुर के अधिकारी सिर्फ मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी पर लगाने का दावा कर रहे हैं। इसमें भी बाहर से आए इन लोगों में से करीब 25 से 30 प्रतिशत लोग ही शामिल हो सके। बाकी मजदूरों का अधिकारियों के पास लेखा-जोखा नहीं है। तीन-चार माह इंतजार करने के बाद भी स्थानीय स्तर पर काम नहीं मिलने से मजदूरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा होने लगा। इधर, दूसरी तरफ इन मजदूरों को गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की कंपनी के अधिकारी पहले से ज्यादा मजदूरी देने का लालच देकर वापस बुला रहे हैं। आर्थिक परेशानी से जूझते लोगों के सामने यहां से वापस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। कुछ मजदूर यहां से वापस दूसरे प्रदेश से लौटने भी लगे। हालांकि वापस लौटने वाले एक लोगों का स्थानीय अधिकारियों के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।
काम देने के नाम पर अधिकारियों ने शाजापुर में 1577 मजदूरों को मनरेगा में काम देने का दावा किया है। मनरेगा में 190 से 200 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से काम की वैल्यू करने के बाद किया जाता है। जबकि इन लोगों को अन्य प्रदेशों में काम के हिसाब से भुगतान मिलता है। ज्यादा काम करने पर यह लोग 10 से 15 हजार रुपए महीना कमा रहे थे। ऐसे में स्थानीय स्तर पर मिल रहे काम से इन लोगों दिक्कत आ रही है।
इसलिए बनी ऐसी स्थिति
स्थानीय स्तर पर फैक्टरी या अन्य उद्योग नहीं होने से ऐसी स्थिति बनी। यहां मजदूरों की संख्या ज्यादा है, लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता। इस कारण मजदूरी की दर व सुविधाएं भी नहीं मिल पाती, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान में कंपनियां ज्यादा मजदूरी देने के साथ ही अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराती हैं।

काम दिलाने दो बार लगाए शिविर भी काम नहीं आए

बाहर से आए तकनीकी रूप से तैयार मजदूरों को काम दिलाने के लिए दो बार शिविर लगाया गए, लेकिन इसके परिणाम भी सकारात्मक नहीं मिले। श्रम अधिकारी आर.सी. रजक ने बताया कि शिविर में आए श्रमिकों ने देवास व अन्य स्थानों से आए कंपनियों के सामने अपनी कई शर्तें रख दी। इसको लेकर यहां की कंपनियां श्रमिकों को काम पर नहीं लगा सकी। श्रम अधिकारी ने बताया कि ज्यादातर लोग मोरबी गुजरात से आए हैं। वहां पर जितना काम उतना पैसा के हिसाब से काम मिलता है। ज्यादा देर काम करने पर इन लोगों को वहां ज्यादा मजदूरी मिलती थी। लेकिन स्थानीय कंपनियों में निर्धारित 8 घंटे की ड्यूटी के मान से ही भुगतान होता है। इसके अलावा मजदूरों ने काम वाले स्थान पर ही रहने की व्यवस्था भी कंपनी की तरफ से ही देने की मांग रखी थी।

बाहरी कंपनियां दे रही ज्यादा पैसे का ऑफर

तीन-चार माह से जिले में बेरोजगार बैठे इन मजदूरों को अन्य प्रदेश के उद्योगपति व कंपनियां ऑफर देकर बुलाने लगी है। उत्तर प्रदेश के श्रमिक वाहन सुविधा नहीं होने से नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे में मप्र के मजदूरों को पहले से 2000 रुपए महीना ज्यादा देने का ऑफर देकर बुला रहे हैं। बाकायदा वहां तक ले जाने के लिए बसों की व्यवस्था भी कंपनी आई करने लगी है।

कितने लोग पलायन कर रहे हैं, इसकी जानकारी जुटा रहे हैं
^बाहर से लौटकर आए श्रमिकों के आंकड़े में बच्चों व परिजनों की संख्या कम होने पर कुल 2626 मजदूरों की पहचान हुई थी। इनमें से ज्यादातर लोगों को काम दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए। यह बात सही है कि अन्य प्रदेशों की तुलना उन्हें यहां कम मेहनताना मिल पा रहा था। ऐसे में अनलॉक होने के बाद कई लोग वापस अपने पुराने कार्यस्थल पर पहुंच रहे हैं। कितने लोग पलायन कर रहे हैं, इसकी जानकारी जुटाई जा रही है।
- मीशा सिंह, सीईओ, जिला पंचायत शाजापुर

बाहर से आए कुल श्रमिक
5128
पोर्टल पर पंजीयन
2626
मनरेगा में काम का दावा
1577
यहां से आए थे
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
5128 workers returned, claiming to get work in 1577 under MGNREGA, half did not enter the portal


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3gmw2Ct

Share this

0 Comment to "5128 श्रमिक लौटे, 1577 को मनरेगा में काम दिलाने का दावा, आधे की पोर्टल पर एंट्री नहीं"

Post a Comment