कुछ मुसलमान चाहते थे कि ताजमहल तोड़कर पाकिस्तान भिजवा दिया जाए, हिन्दू साधुओं की हठ थी कि सिंधु नदी उन्हें मिलनी चाहिए

वर्षों की गुलामी के बाद आजादी के बाद बंटवारे के दर्द के साथ मिली थी। यह विभाजन इतना आसान नहीं था। कई विवाद और तनानती के बीच हुए बंटवारे के बीच कई रोचक किस्से भी सामने आए थे। डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिन्स ने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर ‘आजादी आधी रात को’ नाम से किताब लिखी है। आइये जानते हैं बंटवारे से जुड़े कुछ मजेदार किस्से...
चल संपत्ति के बंटवारे में चले थे लात-घूंसे

बंटवारे के लिए 73 दिन का समय था। ऐसे में हिंदुस्तान के हर हिस्से में सरकारी कार्यालयों में मेज-कुर्सियां, झाड़ुएं और टाइपराइटर गिने जाने लगे। चल संपत्ति का 80 प्रतिशत हिस्सा भारत और 20 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को देना तय हुआ था। सामान के विभाजन पर बहस ही नहीं बल्कि लड़ाइयां भी हुईं। विभागों के बड़े अधिकारियों ने अपने अच्छे टाइपराइटर छुपा देने की या दूसरे पक्ष के हिस्से में आने वाली नई मेज-कुर्सियों की जगह पुरानी टूटी हुई मेज-कुर्सियां लगा देने की पेशकश की।
कुछ कार्यालय तो बिल्कुल कबाड़ी बाजार बन गए। लाखों लोगों की किस्मत का फैसला करने वाले बड़े-बड़े सफेदपोश प्रतिष्ठित ज्वाइंट सेक्रेटरी एक कलमदान के बदले में पानी के जग की, हैट मांगने की खूंटी स्टैंड के बदले छतरी रखने की स्टैंड की, 125 पिन-कुशन के बदले एक कमोड की अदला-बदली कर रहे थे।
बिना विवाद के बंटी शराब

सरकारी मेहमानखानों में खाने के बरतनों, छुरी और दीवार पर लगी हुई तस्वीरों के बंटवारे पर खूब जूतमपैजार तक हुई। एक चीज पर कभी बहस नहीं होती थी, वह है शराब। जितनी शराब होती थी वह भारत को मिल जाती और उसके बदले में पाकिस्तान के हिसाब में कुछ रकम डाल दी जाती।
ताजमहल को तोड़कर पाकिस्तान भेजने की मांग

नौकरशाहों के अलावा कुछ चरमपंथी विचारों के लोग भी अपने दावे पेश कर रहे थे। कुछ मुसलमान चाहते थे कि ताजमहल को तोड़कर पाकिस्तान भिजवा दिया जाए, क्योंकि इसे एक मुसलमान ने बनाया था। वहीं हिन्दू साधुओं की हठ थी कि सिंधू नदी उन्हें मिलनी चाहिए क्योंकि लगभग 25 शताब्दी पहले पवित्र वेद उसी के पावन तट पर बैठकर लिखे गए थे।
सिक्का उछालकर हुआ घोड़ा गाड़ियों का बंटवारा

उस समय वायसराय-भवन के अस्तबल में 12 घोड़ा गाड़ी थीं। यह हाथ से गढ़ी हुई सोने और चांदी की तरह-तरह की सजावटों से लैस, चमचमाते साज और लाल मखमली गद्दियों वाली थीं। इन गाड़ियों में साम्राज्यवादी सत्ता की वह सारी शान-शौकत और उसका यह सारा राजसी दंभ साकार हो उठा था, जिस पर ब्रिटिश राज की भारतीय प्रजा मंत्रमुग्ध हो उठती थी। भारत के हर वायसराय, हर शाही मेहमान और भारत से गुजरने वाले हर शाही मुसाफिर को इन्हीं गाड़ियों में बैठाकर राजधानी की सैर कराई जाती थी।
इनमें 6 की सजावट सुनहरी (गोल्डन) और 6 की रुपहली (सिल्वर) थी। गाड़ियों के सेट को तोड़कर बांटना दुखद होता। तय यह हुआ कि एक राज्य को सुनहरी और दूसरे को रुपहली गाड़ियां दे दी जाएं। माउंटबेटन के एडीसी लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने सुझाव दिया कि सिक्का उछालकर फैसला होगा कि किसी राज्य को कौन सी गाड़ियां मिलेंगी।
भारत की तरफ से कमांडर मेजर गोविंद सिंह और पाकिस्तान की तरफ से कमांडर मेजर याकूब खान वहां मौजूद थे। चांदी का एक सिक्का हवा में उछाला गया। गोविंद सिंह ने चिल्लाकर कहा ‘पुतली’। सिक्का जब अस्तबल के फर्श पर गिरा तो मेजर गोविंद सिंह की खुशी का ठिकाना नहीं था। साम्राज्यवादी शासकों की सुनहरी गाड़ियां भारत को मिली थीं।
ज्योतिषियों ने तारीख को बताया था अशुभ

अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन की तारीख की तरह भारत की आजादी की तारीख पर भी विवाद हुआ था। इस तारीख को ज्योतिषियों ने अशुभ बाया था। माउंटबेटन ने जल्दबाजी में भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त की तारीख चुन ली थी। कई ज्योतिषियों ने मिलकर अंत में भारतीय राजनीतिज्ञों को सलाह दी कि 15 अगस्त का दिन तो राष्ट्र के आधुनिक इतिहास को आरंभ करने के लिए बेहद अशुभ है।
इसकी तुलना में 14 अगस्त को ग्रहों की स्थिति काफी अच्छी है। भारत के राजनीतिज्ञों ने ग्रहों की दशा को टालने के लिए जो सुझाव रखा उसे वायसराय ने तुरंत मानकर संतोष की सांस ली। उन्होंने यह निर्णय लिया कि भारत और पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को ठीक आधी रात को स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएंगे।
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