रोज नए मरीजों को भेजने कर रहे मना अफसरों के फोन के बाद हो रहे भर्ती

मार्च माह से कोरोना मरीजों की सेवा में लगे मेडिकल कालेज में अब इलाज व अन्य व्यवस्थाएँ लड़खड़ाने सी लगी हैं। यहाँ भर्ती मरीजों व उनके परिजनों का अनुभव कुछ ऐसा ही है, वहीं बढ़ती मौतों से यहाँ के इलाज के प्रति लोगों का नजरिया बदलना भी स्वाभाविक है। किडनी के मरीज कोरोना संक्रमित 27 साल के युवक की आठ दिन उपचार के बाद मौत को लोग इलाज में लापरवाही से जोड़ रहे हैं। यहाँ भर्ती मरीज का सामान गायब होने जैसी भी शिकायतें मिलने लगी हैं।
मेडिकल के अलावा जो निजी अस्पताल मोटी रकम लेकर कोरोना संक्रमितों का इलाज करने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उनमें अधिकांश में मरीजों की देखरेख करने दिन में एक बार ही नर्स आती है। हालात तो यहाँ तक पहुँच गए हैं कि एक निजी अस्पताल द्वारा तो अब संक्रमित की मौत के बाद परिजनों से बाॅडी बैग के भी एक हजार रुपए वसूले जा रहे हैं। क्या बुलेटिन की जिम्मेदारी सिर्फ मेडिकल की| स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इन दिनाें निजी अस्पतालों पर खासे मेहरबान दिख रहे हैं, तभी तो कोरोना से मरने वाले लोगों का बुलेटिन मेडिकल जारी कर रहा है, वहीं निजी अस्पतालों में कहाँ-किस संक्रमित की मौत हुई इसकी कोई जानकारी नहीं बताई जा रही। विभाग द्वारा सिर्फ मृतकों की संख्या में ही उस मौत का इजाफा किया जा रहा है। निजी अस्पताल तो कोविड मरीज की मौत अपने अस्पताल में दिखाना ही नहीं चाहते।
एक नर्स के भरोसे रह रहे मरीज| संक्रमितों का इलाज कर रहे एक निजी अस्पताल में सतना के एक ही परिवार के 6 लोग भर्ती हैं, इनमें एक महिला की मौत भी हुई। परिजनों के अनुसार महिला के शव को रखने के लिए बॉडी कवर का एक हजार रुपया उनसे माँगा गया। उनका कहना था कि अस्पताल में कोई डॉक्टर जाँच करने नहीं आता, एक नर्स ही दिन में एक बार आती है, ऐसे में किसी की हालत बिगड़े तो उसकी जान खतरे में पड़ना तय है।
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