8 दिन बाद खुलेंगे स्कूल, जहां समय पर झाड़ू तक नहीं लगती वहां कैसे होगी पढ़ाई

5 महीने से बंद सरकारी हाईस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल 8 दिन बाद खुलने वाले हैं। जो स्टूडेंट्स अब तक घरों में बंद थे और पढ़ाई में पिछड़ रहे थे। वे अब स्कूल पहुंचकर शिक्षकों से अपने डाउट्स क्लीयर कर सकेंगे। इसके लिए शिक्षा विभाग ने गाइडलाइन तो दे दी लेकिन ग्राउंड लेवल पर इसे अमल करना चुनौती है। 27 बड़े स्कूलों में से 24 गांव में लगते हैं। कहीं पर भृत्य नहीं होने के कारण आम दिनों में झाड़ू नहीं लग पाती, शौचालयों में पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती। वहां सफाई से लेकर सैनिटाइजर और बच्चाें में अवेयरनेस लागू करवा पाना, लोहे के चने चबाने जैसा है। हाईजीन यानी संक्रमण मुक्त माहौल देने के लिए न पर्याप्त साधन-संसाधन हैं और ना ही किसी की जिम्मेदारी तय।
कोरोना को कंट्रोल में लाने के लिए सरकार ने 22 मार्च से लॉकडाउन किया था। 5 महीने जैसे-तैसे संक्रमण की चेन तोड़ने की कोशिश की लेकिन अब भी उसकी कड़ी कहीं ना कहीं जुड़ी हुई है। बच्चों में संक्रमण ना फैले इसके लिए सरकार ने स्कूलों को बंद कर ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की। ये सत्र पिट ना जाए, इसके लिए अब 21 सितंबर से हाईस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल खोले जा रहे हैं। कक्षा 9वीं से 12वीं तक के स्कूल री-ओपनिंग ऑर्डर देते हुए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) सरकार ने जारी किए हैं। इसमें स्टूडेंट्स स्वैच्छिक आधार पर शिक्षकों से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आ सकेंगे। ऐसी संभावनाएं बन रही हैं कि शुरुआत में 5-5 बच्चों को ही स्कूलों में बुलाया जाएगा लेकिन ये भी तय है कि जो बच्चे ऑनलाइन या ऑफलाइन पढ़ाई से जुड़ नहीं पाए हैं वे स्कूलों का रुख करेंगे। स्कूल आने पर शिक्षक उन्हें मना भी नहीं कर सकते। भास्कर ने हायर सेकंडरी स्कूल सरसी का मुआयना किया तो वहां शौचालय से लेकर पानी की टंकी जर्जर मिली। सीमेंट की टंकी में नल नहीं लगे। जब शौचालयों की ये स्थिति है तो सैनिटाइजर से लेकर
नैपकिन की व्यवस्था जुटान मुश्किल दिख रहा है। ऐसे में स्कूल खुलने के बाद भी बच्चों को इन्हीं परेशानियों से दो-चार होना पड़ेगा।
प्रयासों की कमी वरना फंड भी पर्याप्त, सारी व्यवस्था जुटाई जा सकती है
सभी स्कूलों के पास लोकल फंड रहता है। आरएमएस से हर साल 50 से 75 हजार रुपए मिलते हैं। इसमें से 25 हजार कार्यालय स्टेशनरी, 50 हजार स्कूल मरम्मत के लिए आते हैं। इसके अलावा स्कूल में प्रवेश लेने वाले बच्चों की फीस अलग रहती है। एक खाता एसएमडीसी का रहता है जिसमें 75 हजार रुपए जमा होते हैं। इसका उपयोग मेंटेनेंस, स्कूल व बच्चों के लिए खर्च कर सकते हैं। नियमित में देखें तो खर्च ना के बराबर ही रहता है। ऐसे में पर्याप्त फंड होने के कारण सेफ्टी के सारे इंतजाम किए जा सकते हैं।
मॉनीटरिंग के लिए ये कर सकते हैं
सभी स्कूलों की सफाई होने के साथ ही नगरपालिका व पंचायत द्वारा एक-दो बार सैनिटाइज्ड हो जाए जिसका प्रमाण-पत्र भी स्कूल दे दें। मॉनीटरिंग सख्ती से करते शेड्यूल जमाएं ताकि अनावश्यक भीड़ ना जुटे। पटवारी, नायब तहसीलदार और गिरदावर एक-दो बार स्कूलों की व्यवस्थाओं का दौरा कर लें। अगर अमले की कमी हो तो गांव में दो-दो वालेंटियर बना दें जो निगरानी व सहयोग करें।
ये हैं ब्लॉक के 27 स्कूल, कुछ में भृत्य तक नहीं है
शहर में महात्मा गांधी उत्कृष्ट उमावि, कमला नेहरू उमावि, काटजू उमावि सहित ग्रामीण में असावती, मांडवी, गोंदीधर्मसी, रोला, रिंगनोद, कलालिया, पिपलियाजोधा, ढोढर, रोजाना, सादाखेडी, सरसी, गडगडिया, बडावदा, उपलई, बर्डियागोयल, लसुडिया जंगली, मल्लाखेडी, बिनौली, भैंसाना, बहादुरपुर जांगीर, हाटपिपलिया, बंडवा, ऊणी उमावि स्कूल है। इनमें से मांडवी, गडगडिया, लसुडिय़ा जंगली, बिनोली, भैंसाना, ऊणी, बंडवा में भृत्य नहीं है।
तैयारियां तो दूर, जिम्मेदारों को निर्देशों का इंतजार
आठ दिन बाद स्कूल खुलेंगे, जिसके लिए स्कूलों को हाईजीनिक माहौल देने की तैयारी तो दूर अब तक शिक्षा विभाग के जिम्मेदार शासन से निर्देश मिलने का इंतजार ही कर रहे हैं। ऐनवक्त पर निर्देश आ भी गए तो व्यवस्था कैसे जुटेगी, यह कोई नहीं जानता। सहायक संचालक का कहना है कि 21 सितंबर से स्कूल तो खुलना है लेकिन स्कूल में व्यवस्थाओं से लेकर जिम्मेदारी किसकी और क्या रहेगी, इसे लेकर अभी कोई निर्देश नहीं मिले हैं।
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