पैडमेन की किताब पढ़कर मिली प्रेरणा तो चंबल घाटी में बसे गांव में हाइजीन सैनेटरी पैड बनाने की लगा दी इंडस्ट्री

चंबल घाटी में बसे मनेपुरा गांव में जहां महिलाएं सैनेटरी पैड का उपयोग करना तो दूर, इस पर बात करना तक पसंद नहीं करती थी, वहां आज इस गांव की महिलाएं खुद सेनेटरी पैड बनाकर स्वावलंबी बनने की राह पर हैं। यह बदलाव गांव के दो युवा भाईयों की वजह से हुआ है। जिन्होंने पैडमेन मुरूगनाथम की जीवनी से प्रेरणा लेकर न सिर्फ छोटे से गांव में सैनेटरी पैड बनाने का काम शुरू किया बल्कि जिले की महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने का काम भी कर रहे हैं।

हम बात कर रहे हैं मनेपुरा गांव में पले बढ़े विराग और अनुराग बौहरे की जिन्होंने बीहड़ी क्षेत्र में बसे इस गांव में सैनिटरी पैड मैन्यूफैक्चरिंग की इंडस्ट्री लगा दी। दोनों युवा भाई आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को संक्रमण से बचाने के लिए मुफ्त में सेनेटरी पैड भी देते हैं, जिस वजह से वे अपने इलाके में पैडमेन के नाम से विख्यात हो चुके हैं। यह कार्य वे सर्वोदय संत लल्लू दद्दा समिति के माध्यम से कर रहे हैं।

जयपुर की कार्यशाला में शामिल हुए थे दोनों भाई
विराग और अनुराग बौहरे ने बताया कि वर्ष 2008 में राजस्थान के जयपुर शहर में एक समाजसेवी संस्था द्वारा महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म और सेनेटरी पैड के विषय को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें हम दोनों भाई भी शामिल हुए थे। उस कार्यशाला में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को होने वाले विशेषतौर पर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की परेशानियों को बारीकी से जाना। उस वक्त हमारे मन में सेनेटरी पैड बनाने का विचार आया।

नेपाल सरकार से 250 मशीनों का किया अनुबंध
अनुराग बौहरे ने बताया कि वर्ष 2010 में सिर्फ एक लाख की लागत से यह मशीन बनाई थी जिसे बनाने में डेढ़ साल लगा। यह मशीन सस्ती है। इस मशीन से बना पैड बायोडिग्रेडेबल व प्रदूषण मुक्त है। यह सेनेटरी मशीन देश के 250 स्थानों पर हम लोग लगा चुके हैं। वहीं नेपाल में 150 मशीन लगाने का हमारी वहां की सरकार से अनुबंध है,लॉकडाउन से पहले हम लोग नेपाल में 30 मशीन लगा चुके हैं।



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सेनेटरी पैड मशीन पर नए पैड बनाती हुई गांव की महिलाएं।


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