सड़क किनारे बने अधिकांश शौचालय खस्ताहाल, दिखाने के लिए रंग रोगन

नगर निगम स्वच्छ सर्वेक्षण के मुहाने पर खड़ा है। सबसे पहला सर्वे ही कठिन चुनौती पेश कर रहा है। पिछले साल के सर्वे में शहर को स्टार रेटिंग ने बुरी तरह पछाड़ दिया था। निगम ने दावा 7 स्टार का किया था और मिला कुछ नहीं, बस यहीं से सब गड़बड़ हो गई थी और इस बार तो पहले ही पायदान पर मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया है। ओडीएफ प्लसप्लस की टीम किसी भी वक्त आमद दे सकती है, लेकिन तैयारियों के लिहाज से निगम के हाथ खाली हैं।

अब आनन-फानन में जो काम हो भी रहे हैं वे केवल दिखावा साबित हो रहे हैं। जनता अभी तक जिन गंदे शौचालयों का उपयोग कर रही थी उसमें यदि अब मखमली कालीन भी बिछा दिए जाएँ तो उससे दर्जा ही हासिल हो सकता है, लेकिन जनता के दिलों में निगम को जगह नहीं मिल पाएगी, हालाँकि अभी भी सड़क किनारे बने शौचालयों के हाल बेहाल हैं और कोई देखने नहीं जा रहा।

निगम अधिकारियों का कहना है कि ओडीएफ प्लसप्लस की टीम का निरीक्षण कभी भी शुरू हो सकता है। अब सवाल उठता है कि यदि टीम के आने पर ही निगम की फौज सक्रिय होती है तो फिर बाकी समय जनता ने जो नर्क भोगा उसका क्या होगा। शौचालयों के हाल इतने खराब हैं कि उनमें घुसने की भी इच्छा न हो। ऐसे में केवल दिखावा करने से क्या हासिल होगा। सड़क किनारे निगम ने जितने भी टाॅयलेट बनाए हैं उनके हाल बेहाल हैं, लोग उनके अंदर नहीं जाते बल्कि अगल या बगल में ही लघु शंका कर देते हैं। अब ऐसे टायलेट को सर्वेक्षण के लिए सजाया जा रहा है, लेकिन इनकी देखरेख के लिए किसी को तैनात नहीं किया गया।

दिखाने के लिए लगा रहे टाइल्स
नगर निगम को सर्वे की इतनी चिंता है कि मंगलवार की रात को भी नगर निगम के ठीक पीछे काॅफी हाउस के बगल में बने सार्वजनिक शौचालय में टाइल्स लगवाई जा रहीं थीं। अब सोचने वाली बात यह है कि नगर निगम के ठीक पीछे का शौचालय पहले से तैयार नहीं था तो शहर के बाकी के टायलेट का क्या हाल होगा। निगम की बाउंड्री से लगकर बने शौचालय को क्या साल भर चकाचक नहीं रखा जा सकता है, यदि ऐसा होता तो टीम के आने की आहट पर दिन-रात काम नहीं कराना पड़ता।

142 शौचालयों में लगी नजर
शहर में सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों की संख्या 142 है। निगम पूरी तरह से इन पर ही ध्यान दे रहा है। पिछले साल इन टॉयलेट में शिकायत दर्ज करने के लिए रजिस्टर तक रखा गया था। टॉवेल, साबुन, आईना से लेकर महिलाओं की जरूरत के कई अन्य साधन भी जुटाए गए थे। इस बार इन सबकी कमी नजर आ रही है।

डस्टबिन रखने का ढोंग
टायलेट में अब बिल्कुल नए डस्टबिन रखने की तैयारी है, जिन शौचालयों में अभी तक बिजली और पानी की भी व्यवस्था नहीं की गई थी उनमें अब डस्टबिन रखे जा रहे हैं। ऐसे में जब टीम के सदस्य लोगों से पूछते हैं तो वे निगम की पूरी पोल खोल देते हैं। यही सुविधाएँ यदि लोगांे को साल भर मिलें तो हर नागरिक अपने शहर की तारीफ ही करेगा लेकिन इन दिखावों से कुछ नहीं होने वाला।

टीम शहर के हर क्षेत्र का भ्रमण करती है
ओडीएफ प्लसप्लस की टीम केवल शौचालयों का निरीक्षण ही नहीं करती है, बल्कि वह शहर के बाहरी क्षेत्रों पर भी नजर रखती है कि कहीं भी खुले में शौच तो नहीं हो रही है। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, बाजार क्षेत्र, ऐरोड्रम में भी टीम के सदस्य भ्रमण करते हैं और यह सर्वविदित है कि आम शहरी खुले में शौच करने में कोई हिचक महसूस नहीं करता है, इसलिए इसके लिए पहले से ही लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए थी कि टीम आ रही है और कम से कम इस दौरान सावधानी बरती जाए लेकिन निगम ने ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Most of the toilets built on the roadside are decaying, color lacquer to show


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2K5boLS

Share this

0 Comment to "सड़क किनारे बने अधिकांश शौचालय खस्ताहाल, दिखाने के लिए रंग रोगन"

Post a Comment