सोशल डिस्टेंसिंग क्या होता है साहब पता नहीं ... हमें तो केवल घर जाना है

आईएसबीटी में घर जाने की चाह में मजदूर बेबस नजर आए। सारी फाॅरमेलिटी पूरी करने में मजूदरों को 4 से 5 घंटों का समय लगा। इस दौरान जमीन में डेरा जमाए मजदूर बिल्कुल सटे हुए बैठे नजर आए। जब उनसे कोरोना से बचने सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही गई तो सभी का यही कहना था कि वे सोशल डिस्टेंसिंग नहीं जानते हैं...हाँ दूर बैठने जरूर कहा जाता है। लेकिन अब उन्हें कोरोना का डर नहीं है। क्योंकि यदि समय रहते अपने गृह निवास न पहुँचे तो भूख से अवश्य मर जाएँगे। मौजूदा खेप मंडला, डिण्डौरी, छतरपुर आदि स्थानों को जाने के लिए बसों का इंतजार कर रही थी। आखिरकार एक-एक मजदूरों की स्क्रीनिंग और रजिस्ट्रेशन करने में वक्त तो लगता ही है।
बस ऑपरेटर एसोसिएशन के अध्यक्ष पिंटू तिवारी ने बताया कि बसें मजदूरों से ठसाठस भर जाती हैं। 52 सीटर बस में 70 से 75 मजूदर भेजे जा रहे हैं। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बसों में मजूदर किस तरह जाते होंगे। इससे कोरोना फैलने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
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