परिवार दूर खड़ा रहा, इन्होंने अस्पताल पहुंचाकर निभाया फर्ज
काेराेना के खिलाफ जारी इस जंग में डाॅक्टर, नर्स, पुलिस और प्रशासन के अलावा निगम अमला काम कर रहा है। ये लाेग फ्रंट लाइन में तैनात हैं और काेराेना से सीधे जंग लड़ रहे हैं। इनके अलावा कुछ लाेग अाैर हैं जाे जान काे जाेखिम में डालकर सेवाएं दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं 108 एंबुलेंस के उन ईएमटी और पायलेट की जाे पाॅजिटिव मरीजाें काे अस्पताल पहुंचाने के दिन-रात लगे हैं। ये अब तक 700 मरीजों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं
जोखिम ... एक बार सुबह पीपीई किट पहनी तो रात को ही उतारते हैं
अभी हम नाैकरी नहीं कर रहे हैं, बल्कि जंग लड़ रहे हैं और जंग में जान का जाेखिम ताे हाेता ही है। यह कहना है गांधी नगर की एंबुलेंस के ईएमटी राजेंद्र साेनी का। वैसे ताे ड्यूटी 12 घंटे की हाेती है, लेकिन जिस दिन पाॅजिटिव केस ज्यादा आजाते हैं ताे एक बार पीपीई किट पहनने के बाद रात में ही उतारते हैं। एेसे में कई बार सुबह का खाना सीधे रात में ही खाने काे मिलता है। परिवार चिंता करता है।
जिंदादिली..काेई उन्हें हाथ लगाने काे तैयार नहीं था, हमने अस्पताल पहुंचाया
गांधीनगर एंबुलेंस के ईमटी सुनील प्रजापति ने बताया बागसेवनिया में एक बुजुर्ग महिला काेराेना की संदिग्ध थीं। हाथ लगाना ताे दूर काेई उनके पास भी जाने काे तैयार नहीं था। हम माैके पर पहुंचे ताे उन्हें तेज फीवर था। सांस भी उखड़ रही थी। 104 पर काॅल किया ताे डाॅक्टर ने काेराेना का संदिग्ध मरीज बताया। उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया। तब लगा कि आज नाैकरी नहीं कुछ नेक काम किया है।
जज्बा .. बुजुर्ग से चलते नहीं बन रहा था ताे गाेदी में उठाकर एंबुलेंस में बैठाया
हबीबगंज लाेकेश की एंबुलेंस के ईएमटी भूपेंद्र द्विवेदी ने बताया कि जहांगीराबाद से पाॅजिटिव मरीज काे लेने की काॅल थी। हम पहुंचे ताे करीब 70 साल की बुजुर्ग महिला घर के बाहर बैठी मिलीं। उनका वजन ज्यादा था, उनसे चलते नहीं बन रहा था। परिवार वाले दूर खड़े देख रहे थे, काेई मदद काे तैयार नहीं था। मैंने पायलेट की मदद से महिला काे गाेद में उठाकर एंबुलेंस में बैठाया और रास्ते भर उनका हाैंसला बढ़ाता रहा।
जुदाई...घर एक किलाेमीटर दूर है, फिर भी एक महीने से बेटी का मुंह नहीं देखा
हबीबगंज लाेकेशन की एंबुलेंस के पायलेट प्रदीप सेन एक महीने से पाॅजिटिव मरीजाें काे अस्पताल पहुंचाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में वे पुराने थाने में ही रुकते हैं। उनका कहना है कि थाने से करीब एक किलाेमीटर दूर ऋषि नगर में मेरा परिवार रहता है। लेकिन, संक्रमण के खतरे काे देखते हुए मैं घर नहीं जाता हूं। क्याेंकि घर में चार साल की बेटी और बूढ़े मां-बाप हैं। जितनी मेहनत सात साल में की, उससे ज्यादा मेहनत इस एक महीने में हाे गई।
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