शासन और पुरातत्व विभाग की बेरुखी से नष्ट हो रहे नगर के पुरातत्व स्मारक

सरकार और पुरातत्व विभाग की बेरुखी के कारण शहर के पुरातत्व महत्व के कई स्मारक नष्ट हो रहे हैं। प्राचीन समय में बने शहर के प्रमुख द्वार, प्राचीन किला, फूक बावड़ी सहित अन्य कई स्मारक देखरेख के अभाव में अपना अस्तित्व खो रहे हैं। पुरातत्व महत्व के इन स्मारकों की देखरेख की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
शहर के बीच में स्थित प्राचीन किला देखरेख के अभाव में नष्ट हो रहा है। एक समय इस किले में शहर का थाना संचालित होता था। थाना दूसरी बिल्डिंग में शिफ्ट होने के बाद यह इमारत बारिश, आंधी तूफान में धीरे-धीरे जर्जर होती रही। कुछ महीने पहले किले की ऊपर मंजिल देखरेख के अभाव में नष्ट हो गई थी। इसके बाद भी पुरातत्व विभाग द्वारा इन इमारतों के जीर्णोद्धार की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। साथ ही शहर की सीमा पर बने दरवाजे भी देखरेख के अभाव में नष्ट हो रहे हैं।

समर्द्धशाली रहा है शहर का इतिहास
शहर का इतिहास समृद्धशाली रहा है। इतिहास के संबंध में क्षेत्रीय पुरातत्व विशेष हेमंत दुबे कदवाया ने बताया कि सन् 1808 ईस्वी में दुर्जन शाल खींची ने ओंडिला पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने एक छोटे किले एवं एक तालाब का निर्माण कराया। एक नई बस्ती बनाकर उसका नाम बहादुरगढ़ रखा। इसे बाद में हनुमान गढ़ भी कहा गया। लेकिन जल्द ही सिंधिया की सेना ने जॉन वेप्टिस के नेतृत्व में ईसागढ़ पर हमला किया। दुर्जन शाल खींची को पराजित कर दिया और शहर का नाम ईसागढ़ रखा और इसे सिंधिया स्टेट में सूबा बनाया गया। लेकिन समय के साथ इसका महत्व घटता गया। 1901 में ईसागढ़ परगने से स्टेट को 18 लाख रुपए की मालगुजारी होती थी। ईसागढ़ नगर की उस समय जनसंख्या 2688 थी। फिर भी 1909 तक जिला होने का रूतबा रहा। इसे बाद में बजरंगगढ़ और 1937 में गुना जिला स्थापित किया गया। वर्तमान में ईसागढ़ अशोकनगर जिले की तहसील मात्र रह गई।



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