जब भी एंबुलेंस से कोरोना संक्रमित को छोड़ने जाता हूं तो डर लगता है, घर चलाने वाला मैं अकेला हूं लेकिन ड्यूटी सबसे पहले : पायलट

कोरोनाकाल में स्वास्थ्य मैदानी स्टाफ के संघर्ष को सलाम..। तमाम शंका-कुशंकाओं के बीच वे 100 दिन से ज्यादा से ड्यूटी कर रहे हैं। एंबुलेंस स्टाफ को मरीज को न सिर्फ कोविड सेंटर तक सावधानी से छोड़ने जाना पड़ता है तो सामान्य एंबुलेंस में भी खतरा कम नहीं है। इन दिनों सामान्य एंबुलेंस चालक, ईएमटी स्टाफ और कोरोना पॉॅजिटिव लोगों को कोविड सेंटर ले जाने वाली एंबुलेंस के ड्राइवर और स्टाफ जान की परवाह किए बिना ड्यूटी निभा रहे हैं। कई लाेग परिवार से दूर रह रहे हैं।
ईएमटी धीर राजपूत : एक साल की बेटी से नहीं मिला
काेराेना पॉजिटिव मरीजों को ले जाना हमारी ड्यूटी है। एक महीने से घर नहीं गया हूं। कोतवाली के पास रूम में ठहरे हैं। परिवार से काॅल करके बात कर लेता हूं। घर में 1 साल की बेटी और पत्नी है।
पायलट संजय कुमार : घर का जिम्मा मुझ पर ही है
2016 में बड़े भाई की एक्सीडेंट में मौत हो गई। घर चलाने वाला अकेला ही हूं। घर पर दो बच्चे हैं। इनके अलावा दो भतीजे हैं। बुजुर्ग माता-पिता हैं। डर तो लगता है लेकिन पीपीई किट में काम कर रहे हैं। ड्यूटी पहले है।
ईएमटी अविनाश: पहले बुखार, हिस्ट्री ही पूछते हैं
पहले जब कोई केस होता था तो लोग दौड़कर 108 में शिफ्ट करवाते थे लेकिन अब मरीज हो या हादसे का पीड़ित लोग संकोच करते हैं। हम भी पहले बुखार और हिस्ट्री जानते हैं फिर अस्पताल पहुंचाते हैं।
पायलट बसंत भदौरिया : अब लोग संकोच करते हैं
पहले हादसे काे देख लाेग तुरंत मदद काे आगे आते थे अब संकाेच करते हैं। वैसे गलत भी नहीं है, सावधानी रखना। लेकिन हमारी ताे ड्यूटी है। हम डर से नहीं, सावधानी से काम कर रहे हैं।
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