मृत्युभाेज में नहीं हाेते शामिल, अब देह और नेत्र दान पर भी दे रहे जाेर

मृत्युभाेज की प्रथा काे बंद करने के लिए कई लाेगाें ने 15 साल पहले ही प्रयास प्रारंभ कर दिए थे। पहले ताे उनके इस प्रयासाें का विराेध भी हुआ, लेकिन बाद में उनके पहल काे लाेगाें ने माना और अपनी सहमति भी दी। अब कई लाेग एेसे अायाेजनाें में शामिल नहीं हाेते हैं। इसकी बजाए अब देह और नेत्रदान के लिए वे दूसराें काे प्रेरित कर रहे हैं। इसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है।
बदलाव ये आया है कि पिछले 4-5 सालों में कई समाजों में शोक पत्रिका छपवाने और तेरहवें के कार्यक्रम में मावे की मिठाई बनाने पर पूर्ण प्रतिबंध लाग दिया है। कई समाज ऐसे भी है जहां इस प्रथा को जारी रखने पर लोगों को कर्ज तक लेना पड़ा था।

देहदान के लिए एक कागज पर लिखकर अपने घर पर टांग दिया
हमने समाज में गैर जरूरी प्रथाओं और परम्पराओं को बंद करने और स्वरूप में बदलाव लाने का प्रयास किया है। गांव से अंग नेत्र दान का एक अभियान चलाया है। हमें सफलता मिली और हमारा गांव और ब्लॉक संभाग में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके हैं। मृत्यु भोज के संबंध में 2005 में युवाओं द्वारा इस संबंध में पहल की थी। घर-घर जाकर मृत्यु भोज बंद करने या सीमित करने की सहमति ली। निर्णय लिया कि जो मृत्यु भोज के खिलाफ है वह मृत्यु भोज में शामिल नहीं होंगे। 100 लोगों ने सहमति दी। मृत्युभोज सीमित रूप में या बंद हो गया है। वर्ष 05 में मैंने देहदान करने का निर्णय लिया। कागज पर मेरे मरने के बाद क्या करना है यह टाइप करवाकर दीवार पर टांग दिया है। नेत्र दान करने का कार्य 2008 में शुरू किया। हमारे गांव में ही 39 नेत्रदान हो गए हैं।
-वैद्य परशुराम पाटीदार, पिपल्या, तहसील कुक्षी जिला धार

माताजी के निधन पर नहीं किया मृत्यु भाेज, खर्च की राशि समाज में दान दी
हम 20 साल से मृत्युभोज नहीं कर रहे हैं न ही मेरे परिवार में कोई करता है। दो साल पहले माताजी का स्वर्गवास हुआ था। उसमें 13 दिन तक मिठाई नहीं बनाई। उस खर्च से हमने सामाजिक सेवा की। पगड़ी वाले दिन नेत्रदान का कार्यक्रम रखा। कई लोगों ने नेत्रदान के लिए फॉर्म भरें। बोर्ड परीक्षा में विद्यार्थी सबसे ज्यादा अंक लेकर पास होते हैं उसे 5100 रु. से सम्मानित करते हैं। जाट समाज धार में मुख्य गेट का निर्माण करवाने व किसानों के हित के लिए निःशुल्क मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला डाली। जिससे किसानों का खर्च बचे यह कार्य हमने मृत्युभोज न कर किए। अमूमन एक मत्युभाेज में 4 से 5 लाख रुपए खर्च होते हैं। अभी राजस्थान में बंद हो चुका है हमारे यहां भी सरकार काे एेसा ही निर्णय लेना चाहिए। इस कुप्रथा को जड़ मूल से खत्म हाेना चाहिए।
-रामनारायण चौधरी, अध्यक्ष आदर्श जाट महासभा मप्र घाटाबिल्लौद



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