एमपीआरडीसी के सर्वे में आ रही थी निजी भूमि राशि की कमी के कारण नहीं बन सकी सड़क

स्टेट हाईवे-15 से स्टेट हाईवे 44 तक 32 गांवों तक पहुंचने के लिए बनने वाली सड़क अफसरों की अनदेखी के कारण नहीं बन सकी है। जिसके कारण इन गांवों के ग्रामीणों को घुटनों घुटनों की कीचड़ में से होकर आना जाना पड़ता हैं जिससे समय की बर्बादी और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इस सड़क को पहले पीडब्ल्यूडी बना रही थी लेकिन सड़क एमपीआरडीसी के अधीन जाने से नहीं बन सकी। इसके बाद एडीबी योजना के अन्तर्गत लोन लेकर इस सड़क को एमपीआरडीसी को बनाना था। इसके लिए एमपीआरडीसी के अफसरों ने सड़क के लिए सर्वे करवाया। जिसने निजी जमीन ज्यादा मात्रा में अा रही थी। जिसका अधिग्रहण कर मुआवजा राशि देने के लिए सरकार के पास बजट नहीं था। जिसके चलते एडीबी ने भी सड़क के लिए लोन सेंशन नहीं किया। ओर परिणाम यह रहा कि सड़क नहीं बन सकी।
सड़क नहीं बनने के कारण 32 गांव के 50 हजार से भी अधिक लोग आवागमन के परेशान हो रहे हैं। बारिश के दौरान तो यह परेशानी ओर भी बड़ जाती है लेकिन अफसर ध्यान नहीं दे रहे है। जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। हालात यह है कि सिमारिया कलां से सहजपुर, रोसरा, हमीरपुर, गजनई से होते हुए स्टेट हाईवे 44 तक 12 किलो मीटर सड़क की हालत बद से बदतर हो रही है। इन दिनों सड़क बारिश के कारण दल दल में तब्दील होती जा रही है।

लोनिवि 2 बार करा चुका है सर्वे
सड़क निर्माण किए जाने को लेकर लोक निर्माण विभाग के द्वारा 2 बार सड़क का सर्वे कराया जा चुका है। सिमारिया गांव के रत रहने वाले देवेंद्र रघुवंशी ने बताया कि विधानसभा चुनाव के पहले सड़क निर्माण हेतु लोनिवि के द्वारा 2 बार सर्वे का कार्य कराया गया था। यहां तक कि राजस्व विभाग के द्वारा भी सड़क की नापतौल भी की जा चुकी है। यह सब होने के बाद भी सड़क निर्माण की प्रक्रिया आरंभ नही हो सकी हैं। ग्रामीण सतीश रघुवंशी हमीरपुर, मनोज रघुवंशी, रोंसरा, केशव सिंह सहजपुर, ब्रजेंद्र रघुवंशी, कमल ठाकुर हमीरपुर, राममोहन रघुवंशी, केशव रघुवंशी सिमारिया आदि ने जन प्रतिनिधियों व अफसरों से मांग की है कि सड़क का निर्माण कार्य कराया जाए।

ग्रामीण होते हैं परेशान
12 किलोमीटर की सड़़क का कच्चा रास्ता दलदल में तब्दील हो रहा है। इस दौरान किसी ग्रामीण बीमार होने पर उसे अस्पताल आने जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण परिजनों को खाट पर लिटा कर मुख्य मार्ग तक लाते है। जिसके बाद वाहनों से चिकित्सक या सरकारी अस्पताल इलाज करवाने के जाते हैं।

एमपीआरडीसी को बनाना है
एसएच-12 से एसएच 44 तक की 32 किमी की सड़क को एडीबी योजना अंतर्गत एमपीआरडीसी को बनाना था। जिसके लिए सर्वे भी किया लेकिन निजी जमीन आने से नहीं बन सकी।
दिनेश श्रीवास्तव, एसडीओ, पीडब्ल्यूडी
भूमि अधिग्रहण होने वाली सड़क नहीं बनाते
जिन सड़कों मेे भूमि अधिग्रहण होता है उन सड़कों को एमपीआरडीसी नहीं बनाती है। इसमेंे भी निजी जमीन रही थी।
पवन अरोरा, एजीएम एमपीआरडीसी



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Due to lack of funds, private land was coming in MPRDC survey


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