आवेदन-पत्र में गलती सुधारने का मिला था पर्याप्त मौका, अब नहीं मानी जा सकती गलती

मप्र हाईकोर्ट ने एमपी पीएससी में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के ओबीसी वर्ग के आवेदक की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने आवेदन-पत्र में सुधार करने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया था। एक्टिंग चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की डिवीजन बैंच ने अपने आदेश में कहा है कि आवेदन-पत्र में गलती सुधारने के लिए पर्याप्त मौका दिया गया था, अब गलती नहीं मानी जा सकती है।

इंदौर निवासी डॉ. अानंद सोनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि एमपी पीएससी द्वारा 12 दिसंबर 2017 को असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। उसने अंग्रेजी विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए ओबीसी वर्ग से आवेदन किया था। गलती से उसने आवेदन पत्र में क्रीमीलेयर लिख दिया था।

19 सितंबर 2019 को रिजल्ट घोषित किया गया, उसे 214 अंक मिले, लेकिन ओबीसी की मेरिट सूची में उसका नाम नहीं था। आवेदन पत्र में गलती सुधारने के लिए उसने एमपी पीएससी को आवेदन दिया, लेकिन उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। एमपी पीएससी की ओर से कहा गया कि आवेदन-पत्र में गलती सुधारने के लिए 30 दिसंबर 2017 से 28 जनवरी 2018 तक अवसर दिया गया था।

परीक्षा नियम में स्पष्ट किया गया है कि गलती सुधार का समय समाप्त होने के बाद दोबारा अवसर नहीं दिया जाएगा। असिस्टेंट प्रोफेसर पद के रिजल्ट भी घोषित कर दिए गए हैं। सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने याचिका खारिज कर दी है। पी-4


चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर, किसी भी बैंच में सुनवाई के लिए लगा सकते हैं प्रकरण

मप्र हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में अभिनिर्धारित किया है कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं, वे किसी भी बैंच के सामने प्रकरण को सुनवाई के लिए लगा सकते हैं। ऐसे में उनके निर्णय पर आपत्ति नहीं की जा सकती है। एक्टिंग चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव दुबे की डिवीजन बैंच ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता इस मामले में तीसरा पक्ष है, इसलिए उनकी याचिका को अमान्य किया जाता है।

अधिवक्ता अशोक लालवानी की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि नियमों के अनुसार इंडस्ट्रियल प्लाॅट की लीज निरस्तीकरण के प्रकरण की सुनवाई सिंगल बैंच के समक्ष की जाती है। उनके पक्षकार डायमंड स्टील इंडस्ट्रीज की याचिका को लाेक परिसर बेदखली अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर्ड कर उसकी सुनवाई डिवीजन बैंच के समक्ष की जा रही है।

याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि उनके पक्षकार के प्रकरण की सुनवाई सिंगल बैंच के समक्ष की जाए। सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने याचिका अमान्य करते हुए अपने आदेश में कहा कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं, वे किसी भी बैंच के सामने प्रकरण को सुनवाई के लिए लगा सकते हैं।



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