एनआरसी में पिछले साल 1485 बच्चे थे, इस साल 334 ही, अब डोर टू डोर खोजेंगे

कोरोना काल का बड़ा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर हो रहा है। माता-पिता में कोरोना का डर ऐसा बैठ गया है कि वे बच्चों को एनआरसी (पोषण पुनर्वास केंद्र) में भेजने को भी तैयार नहीं हैं। नतीजा यह है कि इस बार पिछले साल के मुकाबले एनआरसी में 77.51% कम बच्चे भर्ती हुए है। सात साल में ये सबसे खराब स्थिति है। इधर, अब महिला एवं बाल विकास विभाग एक-एक बच्चों के घर पहुंचने की तैयारी में है। ये मिशन सोमवार से शुरू होगा।
बाल चिकित्सालय के एनआरसी केंद्र में शनिवार को सन्नाटा रहा। सिर्फ एक बेड को छोड़ सभी बेड खाली ही थे। अमूमन ऐसा ही हाल कोरोना काल के बाद से बना हुआ है। कभी दो तो कभी पांच बच्चे ही एनआरसी में भर्ती हो रहे हैं। इस सालभर में सिर्फ 334 बच्चे ही एनआरसी में भर्ती किया गया है। आंकड़ा चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि ये पिछले साल से 77.51% कम है। पिछले साल 1485 बच्चों को एनआरसी में भर्ती किया गया था। वहीं, 2016 में अब तक के सबसे ज्यादा 1503 बच्चों को भर्ती किया जा चुका है।

डर की तस्वीर : बाल चिकित्सालय का वार्ड जहां सिर्फ मां-शिशु

इधर, अधिकारियों की मानें तो एनआरसी से बच्चों की दूरी का बड़ा कारण कोरोना का डर है। कम संख्या को देख काउंसिलिंग का फैसला लिया था। लेकिन, मां पिता ऐसे डरे हुए हैं कि काउंसिलिंग के बाद भी बच्चों को एनआरसी में भेजने के लिए तैयार ही नहीं हो रहे हैं।
अब सुपरवाइजर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को देंगी ट्रेनिंग : एनआरसी में बच्चों की कम संख्या को देख उज्जैन-भोपाल के अधिकारी भी परेशान है। शनिवार को महिला एवं बाल विकास विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर एमएल तोमर रतलाम पहुंचे। उन्होंने भी सिर्फ एनआरसी को लेकर ही चर्चा की। इधर, अब फैसला लिया गया है कि सुपरवाइजर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देगी। कार्यकर्ता एक-एक बच्चों के घर जाएगी, समझाकर एनआरसी में लेकर आएगी। ये मिशन सोमवार से ही शुरू कर दिया जाएगा।

तीन साल तक की उम्र के बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में सबसे ज्यादा

{ अब तक सबसे ज्यादा 12 से 36 महीने के छोटे बच्चों को एनआरसी में लाया गया है। 2013 से अब तक कुल 4487 बच्चों को भर्ती किया गया। इसमें से सबसे ज्यादा 2016 में 921 बच्चों को भर्ती किया गया था। इसके बाद 2017 व 2018 में यह संख्या 700 के आसपास रही। 2019 में 823 बच्चों को भर्ती किया था। इधर, 2020 में यह संख्या सबसे कम यानी 159 ही रह गई।

{इधर, 2013 से अब तक कुल 3033 शिशु कुपोषित मिले हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 1128 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ही एनआरसी में लेकर आई हैं। 2016 में 549 को भर्ती किया था। वहीं, ये संख्या 2019 में 619 पर पहुंची जोकि सर्वाधिक थे। इसके बाद इस साल सिर्फ 166 शिशुओं को ही भर्ती किया गया।

{ सात साल में 308 बच्चों को अब तक खुद माता-पिता ही एनआरसी में लेकर आए हैं। वहीं, 23 न्यू बोर्न बेबी को एनआरसी केंद्र में लाया गया है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ही सबसे ज्यादा बच्चों को एनआरसी में लाती हैं, अब तक कुल 3289 बच्चों को कार्यकर्ता लाई हैं, जबकि डॉक्टरों के माध्यम से 2229 बच्चे आए हैं।

कब कितने बच्चे भर्ती हुए
वर्ष बच्चे

2014 644
2015 1326
2016 1503
2017 1209
2018 1200
2019 1485
2020 334

एक्सपर्ट व्यू

हाइट, हेल्थ के साथ दिमाग के विकास पर भी असर

जिला अस्पताल के एसएनसीयू प्रभारी डॉ. नावेद कुरैशी ने बताया दो तरह के न्यूट्रीशियन रहते हैं। 6 महीने का बच्चा दूध पीता है, इसके बाद खाना देते हैं। खाना नहीं खाने... या बिस्किट, चटपटे, मसालेदार आदि बाहर के सामान की लत लगने से बच्चों को पोषण नहीं मिल पाता है। वे कुपोषित हो जाते हैं। कुपोषण का बुरा असर है। हाइट और हेल्थ कम रह जाती है, वहीं, दिमाग के विकास पर भी असर होता है। बच्चों की इम्युनिटी कमजोर होती है, जिससे बच्चा बार-बार बीमार होता है। बच्चा खाएगा नहीं तो बीमार रहेगा। इसलिए कुपोषण को इंप्रूव करना बहुत जरूरी है। बच्चा कुपोषित होगा ताे सीधे तौर पर माता-पिता को आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान होना पड़ेगा। माता-पिता को इस बात को समझना चाहिए। हम भी बच्चों को रेफर करते हैं तो कई एनआरसी में जाने को तैयार ही नहीं होते।

कोरोना के डर के कारण माता-पिता नहीं मान रहे
^कोरोना के डर के कारण ये स्थिति बनी है। समझाने के बावजूद माता-पिता मानने को तैयार नहीं हैं। काउंसिलिंग भी की है। अब अभियान चलाया जाएगा। घर-घर से कुपोषित बच्चों को एनआरसी लाया जाएगा। माता-पिता को समझाने के लिए ट्रेनिंग भी देंगे। सोमवार से इसकी शुरुआत हो रही है।
विनीता लोढ़ा, डीपीओ, रतलाम​​​​​​​



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Last year there were 1485 children in NRC, this year only 334, will now search door to door


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