बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए अधिवक्ताओं को कैसे हटाया

प्रदेश में सरकार बदलते ही महाधिवक्ता कार्यालय की टीम को बदलने की प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। भाजपा सरकार आने के बाद कांग्रेस सरकार के दौरान नियुक्त कुछ अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि कम से कम उन्हें कार्यकाल पूरा करने तक नहीं हटाया जाए। जस्टिस नंदिता दुबे की एकलपीठ ने इस मामले में सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। मामले पर अगली सुनवाई 11 मई को होगी।
कांग्रेस सरकार बनने के बाद दिसंबर 2018 में महाधिवक्ता कार्यालय में शासकीय अधिवक्तओं की नियुक्ति हुई थी। इसके बाद 13 मार्च को इनका कार्यकाल एक वर्ष बढ़ा दिया गया। कुछ समय बाद राज्य में सरकार बदल गई और नई सरकार ने 9 अप्रैल को अधिवक्ताओं को पद से हटा दिया। अधिवक्ता अभिनव दुबे, अमिताभ गुप्ता सहित एक दर्जन ने याचिका दायर कर दलील दी कि जब उन्हें हटाया गया तब प्रदेश में केवल मुख्यमंत्री ही थे। कैबिनेट की मंजूरी बिना और कोई कारण बताए बिना उन्हें हटाना अवैधानिक है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया कि कोई भी आदेश मनमानार्पूण नहीं होना चाहिए।
आरक्षण देने की मांग
ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन एवं ओबीसी-एससीएसटी एकता मंच ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर मांग की है कि आगामी अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण के नियमों को लागू किया जाए। सभी वर्ग के अधिवक्ताओं को नियुक्तियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए।
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