परेशानी बहुत, लेकिन घर पहुंचने की आस में सब सहन कर रहे

गुजरात से प्रदेश में लौटने वाले लोगों की भीड़ पिटोल बॉर्डर पर लगातार बढ़ रही है। शुक्रवार को 4 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे। यहां स्क्रीनिंग के लिए लंबी कतारें लग गई और खाने के पैकेट लेने के लिए भी। शुक्रवार को गर्मी भी ज्यादा थी। प्रशासन ने स्क्रीनिंग की कतारों में खड़े लोगों के लिए और टेंट लगाए, लेकिन ये भी छोटे पड़ गए। भीड़ इतनी हो गई कि व्यवस्थाएं जमाना मुश्किल हो गया। स्क्रीनिंग की लाइन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना संभव नहीं रहा। एक-दूसरे पर गुत्थमगुत्था लोग खड़े थे, फिर भी कतारें दूर तक लगी हुई थी। सैकड़ों बसें लोगों को उनके शहर तक छोड़ने के लिए खड़ी की गई। यहां बाजार भी लग गया। फलों की 40-50 दुकानें लग गई। खाने के पैकेट मिलने तक लोग अपनी भूख फल खरीदकर मिटाते रहे।
गुजरात बॉर्डर से अब तक 36 हजार से ज्यादा लोग आ चुके हैं। हर दिन संख्या बढ़ रही है। बॉर्डर से लोगों को लाने का सिलसिला 25 अप्रैल से शुरू हुआ। शुरुआती चार दिन कम लोग आए, लेकिन अब ज्यादा आ रहे हैं। यहां डाॅक्टरों की 10 टीमें बनाकर स्क्रीनिंग की जा रही है। शुरुआत में गोले लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ खड़ा कराया गया, लेकिन अब ये मुमकिन नहीं रहा। लोग गुजरात बॉर्डर तक वहां के साधनों से आ रहे हैं। वहां से लगभग एक किलोमीटर पैदल चलकर बैरियर पहुंच रहे हैं। यहां स्क्रीनिंग कर बसों में बिठाकर रवाना किया जा रहा है। आने वाले यहां से मुफ्त साधन और यहां खाना मिलने से तो खुश हैं, लेकिन गुजरात में हुई परेशानियों को भूल नहीं पा रहे।
40 दिन जीवन के सबसे बुरे दिन
पचोर निवासी सुरेश वर्मा पत्नी और छोटी बेटी के साथ आए हैं। वो अहमदाबाद से गुरुवार को निकले। बताते हैं, बीते 40 दिन जीवन के सबसे बुरे दिन थे। खाने तक के लाले पड़ गए। गुजरात में हमारे लिए कोई व्यवस्था नहीं हुई। यहां तक आ गए, वही बहुत है। कैसे भी बस घर पहुंच जाएं।
शाम तक 2300 लोग रवाना, फिर भी भीड़
शुक्रवार को शाम 5 बजे तक 88 बसों से 2310 लोगों को रवाना किया गया। इसके बाद भी बैरियर के दोनों ओर सैकड़ों लोगों की भीड़ लगी थी। स्क्रीनिंग के लिए लोगों का नंबर कई-कई घंटे में आ रहा है। सबसे ज्यादा परेशान दोपहर में कतारों में खड़े लोग हुए।
ब्यावरा निवासी नारायणसिंह गुजरात के मोरवी से 40 लोगों के साथ आए हैं। बताते हैं, इतने दिनों से बहुत परेशान हो गए थे। न काम था, न पैसा। मोरवी से किराया देकर यहां तक आ गए, लेकिन यहां भीड़ इतनी है कि कुछ समझ नहीं आ रहा। किस बस में बैठना है, कैसे जाना है, कोई बताने वाला नहीं है।
6 दिन पैदल चलकर आए
सतना निवासी पंकज चतुर्वेदी 32 साथियों के साथ अहमदाबाद से निकले। उन्होंने बताया, किसी के पास पैसा नहीं था। इसलिए सभी लोग परिवार के साथ 6 दिन पैदल चलकर पिटोल तक पहुंचे। हमारे पैरों के सूजन आ गई। यहां हमें बस एक बस मिल जाए तो भाड़ा वहां जाकर दे देंगे। भीड़ इतनी है कि हमारी कोई सुनने वाला नहीं है।
यहां आकर सुकून मिला
रीवा निवासी विनोद गौड़ मोरवी से निकले। बोले, गुजरात में बहुत परेशान हो गए थे। हमारे हाल जानने कोई नहीं आता था। लावारिस पड़े हुए थे। यहां आए तो सुकून मिला। खाना भी मिला और जाने के लिए बस भी।
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