विषय और विकृत व्यवहारों में अनीति की बू ही बसी रहती है
नैतिकता में नीति समाई हुई है। नीति कहती है, जो कहो, वो करो, जो करो, वो कहो, कहो सच्चा और करो अच्छा, इसी में हमारी नैतिकता बसी है। कथनी और करनी में फर्क आने पर हम अनैतिक बन जाते हैं। अनैतिकता पाप और सारे पापों का खुला महाद्वार है। नीति और अनीति का संबंध केवल व्यापार के साथ ही नहीं है, इसका संबंध जीवन के हर व्यवहार के साथ है। व्यवहार का धरातल जब सम, सौम्य, सात्विक और सृजनात्मक होता है, तो वहा नीति पूजा व प्रतिष्ठा प्राप्त करती है। विषय और विकृत व्यवहारों में अनीति की बू बसी रहती है।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक आचार्य विजयराज जी ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित संदेश में कहा नैतिकता के आचरण में जो शांति और आनंद छिपा हुआ है, वह अनैतिकता में नहीं है। नैतिकता ही संत्रस्त मानव जाति का स्थायी समाधान है। अनैतिकता से पैसा कमाया जा सकता है, पर इज्जत नहीं कमाई जा सकती
धर्म के महत्व और मूल्यों को समझना जरूरी
आचार्यश्री ने नैतिकता को धर्म की पृष्ठभूमि बताया। उन्होंने कहा नैतिकता यदि सुरक्षित है, तो धर्म का महल भी टिका रहेगा। नैतिकता रहित धर्म की कोई परिकल्पना ही नहीं की जा सकती। नैतिकता ने ही सारे धर्मों को प्राणवान बनाया है, क्योंकि धर्म की शुरूवात नैतिकता से ही होती है। नैतिकता की कक्षा पास किए बिना धार्मिकता की कक्षा में प्रवेश नहीं मिलता।
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