कॉपी-किताब लेकर तीन घंटे बैठे रहे बच्चे, समझ नहीं आया तो मां ने कहा- आगे का पढ़ लो

साेमवार से घर पर पाठशाला ताे प्रारंभ हुई, लेकिन बच्चाें के लिए घर का काेना कक्षा साबित नहीं हाे सका। जगह की कमी और सफाई का अभाव मुख्य समस्या बनकर उभरे। सुबह 10 से दाेपहर एक बजे तक जिलेभर में बच्चांे काे माेबाइल पर और मैन्यूअल तरीके से शिक्षा की व्यवस्था की गई। सरकार के इस अभियान की स्थिति जानने भास्कर टीम स्लम बस्तियाें में पहुंची। सरकार द्वारा किए गए अनूठे प्रयाेग के बीच यह समस्या भी बरकरार रही। अभियान में संबंधित शिक्षकाें के साथ पालकाें काे भी बच्चाें की माॅनिटरिंग करने की जिम्मेदारी साैंपी है। हालांकि पहले दिन पालकाें ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई, लेकिन पालकाें से चर्चा में सामने आया कि यह राेज-राेज संभव नहीं। दशहरा मैदान और छत्रीपाल क्षेत्र से पढ़े भास्कर की ग्राउंड रिपाेर्ट...।
पालक बाेले- हमेशा नजर रखना संभव नहीं
दशहरा मैदान के पालक जगदीश मुवेल ने बताया वे ग्राम काेटवार हैं। माेबाइल पर ही शिक्षण सामग्री अाती है। अभी कहीं ड्यूटी नहीं हैं ताे ठीक, लेकिन बुलाने पर जाना पड़ जाता है। एेसे में बच्चाें पर हमेशा नजर रखना संभव नहीं। माेबाइल डाटा कभी भी खत्म हाे जाता है। पत्नी भी घर का काम करती है। वह भी हमेशा नजर नहीं रख सकती। दूसरे पालकाें की भी यही स्थिति रही। पालकाें ने बताया जिस दिन मजदूरी करने नहीं गए उस दिन का पैसा नहीं मिलता। घर पर बच्चाें पर नजर रखेंगे ताे काम करने कब जाएंगे।
बच्चे बाेले-घर पर पढ़ाई करना अच्छा लग रहा, लेकिन कुछ पूछना हो तो किससे पूछें
दशहरा मैदान- एक छाेटे से मकान के बरामदे की छाेटी की जगह में चाैथी और पांचवी के बच्चे किताब से पढ़ रहे थे। यहां एक खाट और पास में लकड़ियां और भूसा पड़ा था। बारिश के माैसम में ऐसी जगह से जहरीले जानवर निकलने का खतरा रहता है। कक्षा पांचवी की छात्रा गायत्री मुवेल, कक्षा चाैथी की छात्रा पूजा चाैहान, रानी बबेरिया, पांचवी की छात्रा सावित्री मुवेल, करण बबेरिया ने पूछने पर उन्हाेंने बताया पर घर पर पढ़ने में मजा ताे अा रहा, लेकिन जैसा माहाैल स्कूल जैसा रहता है। वैसा यहां नहीं है। कुछ भी समस्या हो तो स्कूल में टीचर से पूछ सकते हैं लेकिन यहां किससे पूछने जाएं।
छत्रीपाल क्षेत्र - एक छाेटे से कमरे में सातवीं के छात्र मनीष सिसाैदिया, चाैथी के छात्र मनीष सिसाैदिया, दूसरी की छात्रा मीना किराडे, नंदू किराडे पढ़ रहे थे। इसी कमरे में घर की महिला साेनूकिराडे गेहूं बिन रही थी। बच्चाें ने कहा- एक कमरे में पढ़ाई और घर के काम हाेने से एकाग्रता नहीं रहती। यहां बच्चे पढ़ रहे थे। इस बीच मनीष गणित में कुछ उलझ गया और खेलने लगा। वहां बैठी मां ने जब पूछा तो बोला ये समझ नहीं आ रहा है। मां ने देखा तो वो भी कुछ ज्यादा बता नहीं पाई। इस पर उसे कहना पड़ा। आगे का पढ़ लो, कल टीचर से पूछ लेना।
सिर्फ 25 % ही बच्चाें के पालकाें के पास स्मार्ट फाेन
जिले के 40 प्रतिशत में से सिर्फ 25 से 29 प्रतिशत बच्चाें के पालक के पास ही स्मार्ट फाेन हैं। माॅनिटरिंग कर रहे शिक्षकाें ने बताया ऑनलाइन शिक्षण सामग्री में पालकाें के वाट्सएप पर हिंदी व अंग्रेजी शुद्धिकरण के छाेटे-छाेटे वीडियाें डाले जा रहे हैं। जिन्हेंदेखकर बच्चा हिंदी व अंग्रेजी भाषा सीख सकता है।
शिक्षकाें ने ही बताया समाधान....बड़े हाॅल में एक-एक दिन लगाई जा सकती हैं सभी कक्षाएं
बच्चाें की माॅनिटरिंग कर रहे जनशिक्षक राजेश सक्सेना, शंकरसिंह ठाकुर, मनसुखलाल माैर्य, आशीष पाैराणिक ने इसका समाधान बतातेे हुए कहा- सरकार का घर से पाठशाला का प्रयाेग अच्छा है, लेकिन सही मायने में बच्चा मूल रूप से शिक्षा से तभी जुड़ पाएगा, जब उसे निरंतर कुछ घंटे शिक्षक का मार्गदर्शन मिलेगा। एक बड़े हाॅल में एक-एक दिन सभी कक्षाओं के बच्चाें काे बुलाकर उन्हें पढ़ाया जा सकता है।
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