पहले खुद खाना छोड़ा फिर परिवार से कह गए कि हमारी मृत्यु होने पर पूरे समाज को मत जिमाना, दान कर देना

मृत्यु भोज के खिलाफ लोगों की लड़ाई काफी समय से चल रही है। भास्कर ने जब इसे अभियान बनाया तो एेसे लोग सामने आए जिन्हें पहले खुद मृत्यु भोज खाना छोड़ा और फिर परिवार से भी कहा कि हमारी मृत्यु पर भी समाज को भोज मत करवाना। परिवार ने भी उनकी भावना का सम्मान करते हुए पूरी हिम्मत दिखाते हुए एेसा ही किया। मृत्यु भोज के खिलाफ चलाए जा रहे इस अभियान में लगातार लोग व समाज जुड़ रहे हैं। उनका कहना है कि जब मृत्यु भोज शास्त्र सम्मत नहीं है और यह कुरीति है तो हम सबको मिलकर इसको दूर करने के लिए आगे आना चाहिए।

1. क्रांतिकारी विचारधारा के चलते मृत्यु भोज के विरोधी रहे जैन
छोटा बाजार निवासी इंदौर जिला कांग्रेस के महामंत्री रहे प्रदीप जैन (65) 18 अप्रैल को निधन होेने पर 30 अप्रैल को परिवार ने मृत्यु भोज देने का कार्यक्रम नहीं किया। कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले उनके बेटे सौरभ जैन बताते हैं कि पापा प्रदीप जैन को दादाजी स्वतंत्रा संग्राम सेनानी माणकचंद जैन से क्रांतिकारी विचारधारा विरासत में मिली थी। उन्होंने खुद मृत्यु भोज में खाना छोड़ रखा था। उनके कहने पर हमने भी उनके निधन पर मृत्यु भोज नहीं करवाया। दान स्वरूप हमने उसी दिन कोरोना से मृत पीथमपुर के एक व्यक्ति की अंत्येष्टि का पूरा खर्च उठाया।

2. 50 साल पहले ही मृत्यु भोज में खाना छोड़ दिया था लाकड़े ने
कोदरिया गांव के किसान कन्हैयालाल लाकड़े (80) का 18 मई को निधन हुआ तो परिवार ने बारहवें पर 30 मई को ब्राह्मण और कन्या भोज ही करवाया। बेटे कैलाश लाकड़े बताते हैं कि पिताजी ने 50 साल पहले ही मृत्यु भोज में खाना छोड़ दिया था। समाज में वो हमेशा मृत्यु भोज की कुप्रथा को बंद करने बात उठाते और लोगों को इसके लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने हमें मृत्यु भोज नहीं करने का संकल्प दिलाया था, इसलिए हमने उनका मृत्यु भोज कार्यक्रम नहीं किया। समाज ने भी इसके लिए हमारे परिवार की प्रशंसा की।

3. समाज जिमाने के बजाय दान करने का कह गई पाटीदार
गवली पलासिया की मनोरमा पति ओमप्रकाश पाटीदार (71) की 3 जून को मृत्यु होने पर बारहवें पर 14 जून को सिर्फ ब्राह्मण भोज का आयोजन किया गया। सेवा सहकारी संस्था में लिपिक बेटे महेश पाटीदार बताते हैं कि मां मनोरमाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और वो मृत्यु भोज के खिलाफ थीं। उन्होंने हमसे कहा था कि मृत्यु भोज करने के बजाय मेरे नाम से दान धर्म कर देना। उनके कहे अनुसार ही दान करने के लिए हम जल्द ही एक अच्छी राशि किसी संस्था को देंगे।
4. अपने बेटे का मृत्यु भोज न देकर तोड़ी कुप्रथा
संवेदना स्पेशल स्कूल की संचालिका निशा धीरज शर्मा बताती हैं कि 29 दिसंबर 2012 को मेरे 13 साल के बेटे का निधन हो गया। 9 जनवरी को उसके बारहवें पर मैंने सिर्फ 12 ब्राह्मणों को भोजन करवाया। इसके साथ नौलखा स्थित विसर्जन आश्रम के 13 गरीब बालकों व संवेदना संस्था के 45 बच्चों को घर बुलाकर बेटे की पसंद का भोजन कराकर स्वेटर और टोपे दिए। इस कुप्रथा को तोड़ने पर मुझे गर्व है।

ये भी हैं मृत्यु भोजके खिलाफ

  • भृगुवंशी ब्राह्मण समाज के कैशियर चतुर्भुज जोशी बताते हैं कि हमारा समाज लगातार इस कुप्रथा का विरोध कर रहा है। इसके लिए हमारा समाज जल्द अभियान भी चलाएगा।
  • आद्यगौड़ ब्राह्मण पंचायत के पूर्व सचिव पंडित विवेक शर्मा बताते हैं कि मृत्यु भोज हैसियत व समाज में प्रभुत्व दिखाने का जरिया बन गया है, इस पर अंकुश लगना चाहिए।


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