मौत उसकी है, करे जिसका जमाना अफसोस, यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए
राहत इंदौरी के फानी दुनिया को अलविदा कहने की खबर ने दुनिया-ए-अदब में एक गम की लहर दौड़ा दी। मेरे और राहत भाई के रिश्ते 40 साल पुराने थे। इन बरसों में हमने अच्छे-बुरे मौसम देखे। एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ते रहे। वे हमारी सदी के सबसे मकबूल शायर थे, उनका कलाम अलहदा और बेजोड़ था। गुरबत और इंसानियत की हिमायत में खूब लिखा तो जो मुनासिब नहीं लगा उसे आतिशी अंदाज में कहने से भी नहीं चूके। इंसानियत को हमेशा मजहब माना। उनका लहजा सूफियाना था। उनकी शायरी सुनने और पढ़ने के बाद इंसान सिर्फ मोहब्बत की जुबान बोलने लगता था। राहत भाई के इंतकाल की खबर ने सारी दुनिया को गमजदा कर दिया। मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि झकझोरने वाले लहजे में शेर पढ़ने वाला अब नहीं मिलेगा। बेहतरीन शख्सियत के साथ ही उनका हुस्न-ए-अखलाक भी लाजवाब था। हाजिरजवाबी का फन ऐसा कि मिलने वाला मुरीद हो जाए। खुद के अलावा दीगर शायरों के हजारों शेर भी उन्हें याद थे। नई नस्ल को संवारने की हमेशा फ्रिक करते। वाे ऐसे शख्स थे, जिनका दिल हमेशा दूसरों के लिए धड़कता था। हमेशा रोशनी की बात करते, नफरत से नफरत करते और उजालों के तो वो सफीर थे, जो आने वाली नस्लों के लिए अच्छे ख्वाब देखा करते थे। वह चाहते थे, समाज में खुशहाली हो। गुरबत के खिलाफ बुलंद करने वाली वो आवाज हम-अापसे जुदा हो गई। यह एक एेसा खासारा (नुकसान) है, जो कई सदिया भी मिलकर चाहें तो पूरा नहीं कर सकती।
अब कभी न जागूंगा मैं तेरे जगाने से
मौत ओढ़ ली मैंने नींद के बहाने से।
राहत भाई हमेशा हमारी दुआओमें शामिल रहेंगे। जब-जब नई गजल की बात होगी, राहत उसका हवाला बन जाएंगे। आज लफ्ज-ए-खिराजे अकीदत लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे हैं। आखिरी में बस इतना ही...
हवाएं जुल्म का कब खत्म सिलसिला होगा
चिरागे बुझते चले जा रहे हैं, क्या होगा।
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