300 करोड़ जुटाने के लिए सरकार को तलाशना पड़ेगा दूसरा रास्ता, एनओसी पर भी निर्णय नहीं

चंबल नदी से पानी लाने के लिए होने वाले करीब 300 करोड़ रुपए के खर्च के लिए सरकार को दूसरा रास्ता तलाशना पड़ सकता है। क्योंकि, सरकार ने ग्वालियर विकास प्राधिकरण और विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) को विलय से बचाने के लिए शहर के निगम क्षेत्र को एनसीआर से बाहर करने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे हरी झंडी मिलने के बाद एनसीआर बोर्ड इस योजना के लिए स्वीकृत लोन भी निरस्त कर देगा।

प्रस्ताव पर इस महीने के अंत तक निर्णय होने की संभावना है। ऐसा हाेने के बाद एनसीआर बोर्ड से नगर निगम सीमा क्षेत्र में किसी भी काम के लिए पैसा नहीं मिल सकेगा। बोर्ड सिर्फ काउंटर मैग्नेट सिटी के लिए ही योजनाएं बनाएगा और राशि देने का काम करेगा।

टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के संयुक्त संचालक वीके शर्मा ने कहा, जीडीए और साडा का विलय न करने का प्रस्ताव बना है। वहीं ग्वालियर का निगम क्षेत्र एनसीआर से बाहर हो जाएगा। ऐसी स्थिति में सरकार को एनसीआर बोर्ड से चंबल के पानी को ग्वालियर लाने के लिए भी राशि नहीं मिलेगी। इस राशि के लिए सरकार को दूसरी मद का सहारा लेना होगा।

इसलिए साडा और जीडीए के विलय से पलटी सरकार

  • साडा और जीडीए का विलय रोकने के पीछे कारण इनमें होने वाली राजनीतिक नियुक्तियां हैं, क्योंकि साडा और जीडीए में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के साथ अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति होती है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी अपने लोगों को पद देकर खुश करती है। कई बार विधायक के टिकट की दावेदारी करने वाले नेता जब रूठ जाते हैं तो उन्हें भी इन्ही प्राधिकरणों में पद देकर मनाया गया है।
  • शहरी क्षेत्र एनसीआर में शामिल होने के बाद सरकार ने दोनों प्राधिकरणों का विलय करने की तैयारी कर ली थी। जिसके लिए दोनों ही प्राधिकरणों की कुल चल-अचल संपत्ति और बाकी सभी वित्तीय व अन्य प्रकार की जानकारी भोपाल मंगवा ली गई थी उपचुनाव से पहले ये विलय होने वाला था लेकिन अब सरकार ने इस निर्णय को बदलकर दाेनों प्राधिकरणों को बनाए रखने के लिए शहरी क्षेत्र को एनसीआर से बाहर रखने का निर्णय लिया जा रहा।
  • योजना खर्च को लेकर प्लानिंग बदली जा रही है लेकिन अब तक वाइल्ड लाइफ, रेलवे, एनएचएआई की एनओसी इस योजना के लिए सरकार को नहीं मिल पाई है। जिस वजह से ये भी तय नहीं हो पा रहा कि आखिर कब तक इस योजना पर काम शुरू हो सकेगा। दशकों पुरानी ये योजना सरकारी लिखापढ़ी के फेर में ही फंसी रहती है।
  • साडा और जीडीए का विलय रोकने के पीछे कारण इनमें होने वाली राजनीतिक नियुक्तियां हैं, क्योंकि साडा और जीडीए में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के साथ अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति होती है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी अपने लोगों को पद देकर खुश करती है। कई बार विधायक के टिकट की दावेदारी करने वाले नेता जब रूठ जाते हैं तो उन्हें भी इन्ही प्राधिकरणों में पद देकर मनाया गया है।
  • शहरी क्षेत्र एनसीआर में शामिल होने के बाद सरकार ने दोनों प्राधिकरणों का विलय करने की तैयारी कर ली थी। जिसके लिए दोनों ही प्राधिकरणों की कुल चल-अचल संपत्ति और बाकी सभी वित्तीय व अन्य प्रकार की जानकारी भोपाल मंगवा ली गई थी उपचुनाव से पहले ये विलय होने वाला था लेकिन अब सरकार ने इस निर्णय को बदलकर दाेनों प्राधिकरणों को बनाए रखने के लिए शहरी क्षेत्र को एनसीआर से बाहर रखने का निर्णय लिया जा रहा।
  • योजना खर्च को लेकर प्लानिंग बदली जा रही है लेकिन अब तक वाइल्ड लाइफ, रेलवे, एनएचएआई की एनओसी इस योजना के लिए सरकार को नहीं मिल पाई है। जिस वजह से ये भी तय नहीं हो पा रहा कि आखिर कब तक इस योजना पर काम शुरू हो सकेगा। दशकों पुरानी ये योजना सरकारी लिखापढ़ी के फेर में ही फंसी रहती है।


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