1197 वर्ग किमी में फैला है नौरादेही, यहां घास के बड़े मैदान, इसलिए बसा सकते हैं अफ्रीकन चीते

अफ्रीकन चीतों को भारत लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से हरीझंडी मिलने के बाद प्रदेश के कूनो-पालपुर और नौरादेही सेंचुरी में इनकी बसाहट के लिए तैयारी तेज हो गई है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के एक्सपर्ट की एक टीम कूनो के बाद नौरादेही अभयारण्य पहुंची है। टीम दो दिन तक यहां चीतों के रहवास के लिए संभावनाएं तलाशेगी। मंगलवार को पहले दिन टीम ने नौरादेही के सिंगपुर व मुहली इलाके का जायजा लिया।

चीतों के लिए घास के बड़े मैदान देख एक्सपर्ट संतुष्ट दिखे। नौरादेही के इतिहास पर नजर डालें तो 80-90 साल पहले यहां चीतों का प्राकृतिक वास होना पाया गया है। जिससे इस अभयारण्य का दावा ज्यादा मजबूत हो जाता है। दो साल पहले यहां लाए गए बाघ-बाघिन से तीन शावकों के जन्म के बाद नौरादेही देश के नक्शे पर उभरने लगा है। डीएफओ ने बताया कि टीम बुधवार को सर्रा व डोंगरगांव पहुंचेगी। गुरुवार को टीम देहरादून के लिए रवाना होगी।

चीतों के लिए देश में तीन स्थान चिह्नित किए थे

पूर्व में केंद्र सरकार ने अफ्रीकन चीतों के लिए देश में तीन स्थान चिन्हित किए थे। इनमें कूनो-पालपुर और नौरादेही के अलावा एक सेंचुरी राजस्थान की है। इनके अलावा बांधवगढ़ व गांधीसागर को भी वैकल्पिक तौर पर शामिल किया गया है। कूनो और नौरादेही में से किसी एक में चीतों की शिफ्टिंग का प्रयास चल रहा है। कूनो पालपुर में पहले गिर के शेर बसाने की प्लानिंग थी। उसे शेरों के लिए तैयार किया गया था।

यह मामला खटाई में पड़ गया। अब यहां चीतों की शिफ्टिंग के लिए प्रयास शुरू हो गए। कूनो-पालपुर का जायजा लेने के बाद डब्ल्यूआईआई की टीम सोमवार शाम नौरादेही पहुंची थी। इस टीम में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. वायवी झाला एपीसीसीएफ जेएस चौहान व सहयोगी शामिल हैं। टीम मंगलवार सुबह 6.30 बजे डीएफओ नौरादेही राखी नंदा व एसडीओ सेवाराम मलिक के साथ पहले सिंगपुर और फिर मुहली पहुंची। यहां घास के मैदान, नदी, पहाड़ और शाकाहारी जीवों के बारे में जानकारी ली।

एक्सपर्ट से जानिए, नौरादेही क्यों है चीतों के लिए उपयुक्त सेंचुरी

प्राकृतिक वास: नौरादेही अभयारण्य में काफी पहले चीतों के प्राकृतिक वास के प्रमाण मिले हैं। पहले यह अलग सेंचुरी नहीं था। पन्ना टाइगर रिजर्व से यहां बाघों का मूवमेंट होता रहा है। पन्ना के अलावा करीब 150 किमी के दायरे में सिवनी का पेंच, उमरिया के पास बांधवगढ़, मंडला का कान्हा टाइगर रिजर्व हैं। टूरिज्म की दिशा में भी नौरादेही काफी उपयुक्त सेंचुरी माना जा रहा है।

क्षेत्रफल: सागर, दमाेह और नरसिंहपुर जिले में फैली नौरादेही सेंचुरी 1975 में स्थापित की गई थी। यह 1197 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है।वहीं कूनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 748.76 वर्ग किमी है। इसकी स्थापना नौरादेही से बाद 1981 में की गई थी। दमाेह की रानी दुर्गावती सेंचुरी काे भी काॅरिडाेर के जरिए नाैरादेही से जाेड़ने की प्लानिंग चल रही है।

घास का मैदान: नौरादेही अभयारण्य में सबसे ज्यादा खुले घास के मैदान हैं। करीब 400 वर्ग किमी एरिया में चीतों को रखने के लिए मैदान चिन्हित भी किए गए हैं।

बाघों की वंशवृद्धि : नौरादेही में बाघ-बाघिन से तीन शावकों का जन्म और तीनों के यहां रमने के बाद यह माना जा रहा है कि यह सेंचुरी बाघ-चीता जैसे वन्य प्राणियों के लिए मुफीद है। चीतों का बाघ-बाघिन से टकराव जैसी स्थिति बनने की आशंका भी नहीं है। बाघ बड़े जानवरों का शिकार करता है जबकि चीता छोटे वन्य जीवों से पेट भरता है।

- डॉ. बसंत मिश्रा, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट, जबलपुर



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नाैरादेही अभयारण्य का जायजा लेती डब्ल्यूआईआई की टीम।


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