भगवान की भक्ति से ध्रुव ने पाया था ऊंचा स्थान

कलयुग में प्रभु भक्ति व कथा श्रवण से ही मनुष्य के जीवन की नाव इस संसार रूपी भव सागर से पार लग सकती है। मनुष्य को मोह, माया, द्वेष, अहंकार आदि का त्याग कर अधिकांश समय मानवता व भक्ति में लगाना चाहिए। यह बात विष्णु पुराण के चौथे दिन आचार्य श्री जगतगुरु मलुपीठेश्वर श्री राजेंद्रदास महाराज ने कही। इस दौरान क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में मौके पर पहुंचकर संत शिरोमणी मुलक पीठाधीश्वर स्वामी राजेंद्र दास महाराज से आशीर्वाद लिया। नावघाट खेड़ी उत्तर तट स्थित श्रीश्री 1008 बड़े धूनीवाले दादाजी की तपोस्थली दादा दरबार में बड़े दादाजी का सात दिनी जन्मोत्सव का आयोजन श्रीश्री 1008 छोटे सरकारजी के सान्निध्य में चल रहा है।
गुरुवार को विष्णु पुराण के चौथे दिन आचार्य श्री जगतगुरु मलुपीठेश्वर श्री राजेंद्रदास महाराज ने ध्रुव चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए कहा- ध्रुव पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण बालक था। बचपन में एक राजकुमार से इसकी मित्रता हो गई थी। जब राजकुमार इनके यहां मिलने आता था। तब बढ़े ठाट बाट से आता था। अपने मित्र के ऐसे ठाट-बाट को जब ध्रुव देखते थे तब उन्हें लगता था कि अगर मैं भी राजकुमार होता तो इस प्रकार से मैं भी ठाट-बाट से रहता। इस प्रकार के अपने मित्र के ठाट से प्रभावित होकर उन्होंने नदी के जल में आकंठ होकर दस हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। भगवान उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हो गए और कहा- हे भक्त वर मांगो। तब उन्होंने कहा- हे नाथ यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो आप मुझे ऐसा उच्च पद दे दो जो कि आज तक किसी ने नहीं लिया। तब भगवान ने कहा कि हे भक्त मैं तुम्हें ऐसा ही उच्च पद देता हूं। भगवान ने कहा- अगले जन्म में तुम उत्तानपाद राजा के पुत्र बनोगे तब तुम्हारी यह मनोकामना पूर्ण होगी। इस समय वहीं ब्राह्मण बालक उत्तानपाद राजा का पुत्र बना और अपनी तपस्या से परमात्मा को पा लिया। भगवान की कृपा से ध्रुव को ध्रुव लोक प्राप्त हुआ। इसके लिए तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है कि बाद में ध्रुव पछताते हैं कि परमात्मा को भी पाकर मैंने उनसे क्या मांग लिया। इसी के साथ व्यासजी ने कहा- कीटक लोग जैसे मंत्र तंत्र करने वाले के चक्कर में नहीं आकर गुरु महाराज की शरण ग्रहण करें। गुरु एक ऐसा मार्ग है जो भगवत प्राप्ति करा सकता है।



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Due to devotion to God, Dhruv had attained a high place


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