हाथों में विरोध की मशाल... आखिर, कब मिलेगा इंसाफ

भोपाल गैस त्रासदी को 36 साल बीत चुके हैं, लेकिन इस हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री परिसर में रखा जहरीला कचरा अब तक नष्ट नहीं हो सका है। इसके चलते 66 एकड़ (26.71 हेक्टेयर) जमीन का अभी कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है। कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से जमीन का बाजार मूल्य लगभग 181 करोड़ 62 लाख रुपए है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2015 में इस कचरे को इंसीनरेटर में जलाकर नष्ट करने का ट्रॉयल किया गया था, जो सफल रहा था।

इंदौर के नजदीक पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरो इंजीनियर्स के इंसीनरेटर प्लांट में यह ट्रॉयल हुआ था। सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) और मप्र पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड (पीसीबी) दोनों की निगरानी में भोपाल से ट्रांसपोर्ट कर कचरे को पीथमपुर ले जाकर जलाया गया था। सीपीसीबी के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने ट्रॉयल रिपोर्ट मप्र सरकार को सौंपते हुए बाकी कचरे को भी इंसीनरेटर में जलाकर नष्ट करने की सिफारिश की थी। इसके लिए मंजूरी भी दे दी गई थीं। दिल्ली स्थिति सीपीसीबी के एनवायरोमेंट लीगल सेल प्रभारी वैज्ञानिक रामबाबू ने बताया कि कचरा नष्ट कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, इसलिए राज्य स्तर पर ही कचरा नष्ट करने की कार्यवाही की जानी है।

उस स्याह रात की यादें...

  • 36- वार्डों को गैस कांड के बाद प्रभावित माना गया था
  • 3787- लोगों की मौतें गैस रिसाव के 24 घंटे में हुईं थीं
  • 11.80- करोड़ रुपए 78 हजार परिवारों को राहत के रूप में बांटे
  • 5,74,386- नागरिकों को ही गैस त्रासदी का मुआवजा मिला
  • 35,000- लोगों की अब तक जहरीली गैस के प्रभाव से मौत हुईं
  • 4000- गैस पीड़ित रोज इलाज के लिए आते हैं अस्पताल

10 टन कचरा ही हुआ है नष्ट
पीसीबी के साइंटिस्ट आलोक सक्सेना के मुताबिक 10 टन कचरा पीथमपुर इंसीनरेटर में जलाकर नष्ट किया जा चुका है। इसके बाद 335 टन रासायनिक कचरा बचा हुआ है, जिसे नष्ट किया जाना है। यह कचरा एचडीपीई (हाई डेंसिटी पॉलिथिन) बैग्स में भरकर पक्की सीमेंटेड सरफेस पर कवर्ड एरिया में रखा गया है। कचरा खुले इलाके में नहीं हैं। कचरा नष्ट कराने का फैसला गैस राहत विभाग को लेना है।

त्रासदी की कहानी- मां ने भी गैस त्रासदी के कष्ट सहे, तीन बड़े ऑपरेशन हुए...
मनीष सिंह (इंदौर कलेक्टर हैं, गैस त्रासदी के वक्त भोपाल कलेक्टर रहे मोती सिंह के बेटे हैं)

यू नियन कार्बाइड से गैस रिसने लगी थी। हमारा घर करबला में था। हम लोग सो रहे थे। रात को एक सब इंस्पेक्टर आया। उसने गैस रिसने की सूचना दी। जब हम उठे और बाहर आए तो देखा कि आंखों में बहुत जलन हो रही थी। यूका प्लांट से करबला वाला घर करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर था। जहरीली गैस का असर यहां तक पड़ने लगा था। पिता ने तुरंत कंट्रोल रूम गाड़ी लेकर चलने के लिए कहा।

हम कार से सीधे कंट्राेल रूम की तरफ रवाना हुए, लेकिन मुश्किल से कर्फ्यू वाली माता मंदिर तक आ पाए थे। यहां देखा तो चारों तरफ धुआं ही धुआं था। सभी लोग बैरागढ़ की तरफ भाग रहे थे। भीड़ बढ़ती जा रही थी। ऐसे हालत हो गए कि गाड़ी आगे ले जाना मुश्किल हो गया। हमने गाड़ी पलटवाई। सबसे नजदीकी बैरागढ़ थाने पहुंचे। पिताजी ने बैरागढ़ के पुलिस थाने में बैठकर हालात को कंट्रोल करना शुरू किया। हमारा परिवार भी बैरागढ़ में ही रहा।

गैस रिसाव का असर 5 से 6 घंटे बाद जब कम हुआ तो हम वापस घर पहुंच सके थे। मैं गैस त्रासदी के समय फ़र्स्ट ईयर में पढ़ाई कर रहा था। उम्र 18 साल थी। जहरीली गैस ने माता-पिता की सेहत पर भी असर दिखाया। मां की तबीयत 1987 से खराब होना शुरू हुई। उन्हें काफी दिक्कतें रही। उनके दो से तीन बड़े ऑपरेशन हुए। उस दौरान पिताजी 19-20 घंटों तक काम करते रहते थे। ताकि व्यवस्थाएं दुरुस्त हो सकें। वो ऐसी त्रासदी थी जो हर एक के लिए दुखदाई थी।



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बुधवार को एक बार फिर कई गैस पीड़ित संगठनों ने यूनियन कार्बाइड के पास हाथों में मशाल लेकर विरोध प्रदर्शन किया।


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