पापा के पेट का इलाज कराने गए थे, लेकिन अस्पताल में संक्रमित हो गए, हमारे पास तो उत्तरकार्य के भी पैसे नहीं

राहुल दुबे.40 साल केे मांगीलाल भोमराज। लिवर की समस्या से परेशान थे। 29 अप्रैल की रात को घर पर तबीयत बिगड़ी। इलाज के लिए ग्रीन, यलो और रेड अस्पताल तय किए हुए हैं, लेकिन परिवार को पता ही नहीं कि अस्पताल में जाना है। 30 अप्रैल को चार अस्पताल गए, लेकिन किसी ने एडमिट नहीं किया। आखिर में एनसीडब्ल्यू पहुंचे। लिवर की बीमारी का इलाज नहीं हुआ कोरोेना की चपेट में आ गए। छह दिन में जान चली गई। 30 अप्रैल को भर्ती होने के बाद कभी दो बेटे, बहू और पत्नी उनका चेहरा तक नहीं देख पाए। बुधवार को निधन होने के बाद सीधे उन्हें मुक्तिधाम ले जाया गया। चादर में लिपटे शरीर को खोले बिना ही दाह संस्कार कर दिया। अब परिवार के पास रोने और संताप के एक नहीं कई कारण हैं। घर का कमाऊ व्यक्ति चला गया। अंतिम दर्शन तो हुए नहीं। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि तीसरा, दसवां और 13वीं तक के पैसे नहीं हैं। पिता की मौत के दूसरे ही दिन बेटे उधार का बंदोबस्त करने निकल गए। खजराना चौराहा पर एक झोपड़ी में रहने वाले परिवार का घर भी एेसा ही, चाहकर भी क्वारेंटाइन नहीं रह सकते। बेटा बोला- पिता मेहनत मजदूरी करके घर चला रहे थे। अब सारा भार मुझ पर है। अभी तो कहीं मजदूरी भी नहीं। हमारे पास तो दो दिन का राशन भी नहीं है। पिता का उत्तर कार्य भी उधार लेकर करना होगा।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2SM5hNK

Share this

Artikel Terkait

0 Comment to "पापा के पेट का इलाज कराने गए थे, लेकिन अस्पताल में संक्रमित हो गए, हमारे पास तो उत्तरकार्य के भी पैसे नहीं"

Post a Comment