नाथ संप्रदाय अब भी संगीत को जिंदा रखने की काेशिश में

भारतीय संगीत सहित कई परंपरा विलुप्त हाेती जा रही है, लेकिन कुछ परंपरा अाैर संगीत यंत्रों काे कुछ लाेग आज भी सहेजकर रखे हुए हैं। लेकाेड़ा आंजना के 60 वर्षीय रतनलाल नाथ उन्हीं में से एक है। सर्प पकड़ने में माहिर रतनलाल अपनी बिन पर जहां सर्प को नचाते हैं ताे तंबूरा बजाकर कबीर के भजनों पर खुद भी नाचते हैं।
नाथ संप्रदाय की पुरानी परंपरा भिक्षा से प्राप्त वस्त्र व अनाज से ही अपना व परिवार का पालन कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में किसी भी घर परिवार में सर्प निकलता है तो इसी नाथ संप्रदाय के व्यक्ति को ही बुलाया जाता है। इस परंपरा के लोग कबीर के पद व भजनों को गाते हैं, शराब-मांस का भक्षण नहीं करते हैं। रतनलाल नाथ बताते हैं सर्प पकड़ने की विद्या पारंपरिक रूप से आगे बढ़ाई जाती है। परिवार के बेटे-बेटी काे यह शिक्षा दी जाती है, ताकि पुरानी परंपरा जिंदा रहे। हालांकि आधुनिक युग में परंपरा खत्म हाेने की ओरहै। तंबूरा, सितार बजाने की कला अब बची नहीं है। शासन अगर इस पुरातन संगीत को बचाने के लिए ग्रामीण कला संगीत भजन केंद्र या अन्य काेई याेजना लाए ताे संभवत: भारतीय वाद्य यंत्र के इस संगीत काे जीवित रखा जा सके।
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